भौतिक भूगोल की प्रकृति एवं विषय क्षेत्र –
प्राचीन काल से ही भूगोल विचारकों के अध्ययन का एक केंद्र बिंदु रहा है।
प्राचीन विचारकों यथा भारतीय , रोमन, यूनानी तथा मध्यकालीन एवं आधुनिक भूगोलवेत्ताओं ने भूगोल को परिभाषित करने का प्रयास किया है ।हम जानते हैं कि भूगोल आंग्ल भाषा के ज्योग्राफी का है। इसकी उत्पत्ति यूनानी भाषा के Ge (जी) तथा Grapho(ग्राफो) के योग से हुई है। जिसका शाब्दिक अर्थ पृथ्वी का वर्णन होता है। पीटर हैगेट के अनुसार भूगोल पृथ्वी का दर्पण है।
हम्बोल्ट ने पृथ्वी के अध्ययन को भूगोल के अध्ययन का प्रमुख केंद्रीय विषय वस्तु बताया।
वही कार्ल रिटर के अनुसार भूगोल का उद्देश्य पृथ्वी के तल का अध्ययन है जो मानव का निवास गृह है।
विषय क्षेत्र- पृथ्वी पर स्थित भुदृश्य
भूगोल की प्रकृति व विषय क्षेत्रों को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।
भूदृश्य दो प्रकार के होते हैं-
1-प्राकृतिक भूदृश्य
2-सांस्कृतिक भू दृश्य
आधुनिक काल के भूगोलवेत्ता वरेनियस ने अपनी पुस्तक ज्योग्राफिक जेनेरेलिस में भूगोल की प्रकृति एवं विषय क्षेत्र को स्पष्ट करने का प्रयास किया है।
हम जानते हैं कि प्राकृतिक भूदृश्य का अध्ययन वर्तमान में हम भौतिक भूगोल के अंतर्गत करते हैं।
भूदृश्यों के प्रमुख वर्गीकरण को आधार बनाते हुए भूगोल के दो प्रमुख विभाग निर्धारित किए गए हैं।
1-भौतिक भूगोल
2-मानव भूगोल
भौतिक भूगोल के अंतर्गत हम मुख्य रूप से प्राकृतिक भूदृश्यों से संबंधित भौगोलिक तथ्यों का अध्ययन करते हैं।
भू आकृति विज्ञान का मुख्य अध्ययन वस्तु पृथ्वी पर स्थित विभिन्न प्रकार की उच्चावच है।
उच्चावचो की निर्माण प्रक्रम एवं मानव के अंतरसंबंधों का अध्ययन भी इसके अंतर्गत करते हैं।
हम जानते हैं कि उच्चावच तीन प्रकार के होते हैं-
1-प्रथम श्रेणी के उच्चावच- महाद्वीप, महासागर
2-द्वितीय श्रेणी के उच्चावच- पर्वत, पठार, मैदान
3-तृतीय श्रेणी के उच्चावच- नदी, पवन, आदि द्वारा निर्मित तृतीत स्थालाकृति
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