भूगोल का परिचय ( Introduction to Geography )

भूगोल का परिचय ( Introduction to Geography )

भूगोल का अर्थ ( Meaning of Geography )

  • भूगोल ‘ शब्द आंग्ल भाषा के Geography ‘ ( जिओग्राफी ) का पर्याय है जिसकी उत्पत्ति यूनानी भाषा के ‘ ge ‘ ( जी ) और ‘ grapho ‘ ( ग्राफो ) शब्दों के संयोग से हुई है । इस प्रकार भूगोल ( geography ) का शाब्दिक अर्थ है- ‘ पृथ्वी का वर्णन ‘ ( description of the earth ) ।
  • हेटनर ( 1905 ) ने लिखा है , ” वास्तविकता त्रिविमीय विन्यास है जिसे पूर्णरूपेण समझने के लिए हमें तीन दृष्टि बिन्दुओं से निरीक्षण करना चाहिए । इनमें से किसी भी एक बिन्दु वाला निरीक्षण एक पक्षीय ही होगा और वह सम्पूर्ण को प्रदर्शित नहीं करेगा । एक बिन्दु से हम सदृश वस्तुओं के सम्बन्ध देखते हैं । दूसरे से काल के संदर्भ में उसके विकास का और तीसरे से क्षेत्रीय संदर्भ में उनके क्रम और वर्गीकरण का निरीक्षण करते हैं । इस प्रकार प्रथम वर्ग के अन्तर्गत वर्गीकृत विज्ञान ( classified sciences ) , द्वितीय वर्ग में ऐतिहासिक विज्ञान ( historical sciences ) और तृतीय वर्ग में क्षेत्रीय या स्थान सम्बन्धी विज्ञान ( spatial sciences ) आते हैं
  • वर्गीकृत विज्ञान पदार्थों या तत्वों की व्याख्या करते हैं अतः इन्हें पदार्थ विज्ञान ( material sciences ) भी कहा जाता है ।
  • पदार्थ विज्ञानों के अध्ययन का केन्द्र बिन्दु ‘ क्यों ‘ , ‘ क्या ‘ और कैसे ‘ है , ऐतिहासिक विज्ञानों का केन्द्र बिन्दु ‘ कब ‘ है तथा क्षेत्रीय विज्ञानों का केन्द्र बिन्दु ‘ कहाँ ‘ है ।
  • इस प्रकार भूतल के अन्तर्गत तीन प्रकार के क्षेत्र सम्मिलित हैं ।
  • (1 ) पृथ्वी की ऊपरी सतह तथा उसके नीचे की पतली भूपर्पटी ( earth’s crust )
  • ( 2 ) भूतल के ऊपर स्थित निचला वायुमंडल ,
  • ( 3 ) पृथ्वी पर स्थित जलीय भाग ।
  • इन तीनों क्षेत्रों को क्रमशः स्थल मंडल ( Lithosphere ) , वायुमंडल ( Atmosphere ) और जल मंडल ( Hydrosphere ) के नाम से जाना जाता है ।

भूगोल की परिभाषा ( Definition of Geography )

भूगोल पृथ्वी का दर्पण है ( geography is mirror of the earth ) । पीटर हैगेट ( 1990 ) ने लिखा है कि ‘ इतिहासकार दर्पण का प्रयोग पीछे देखने के लिए और भौतिकविद् आगे देखने के लिए करता है तो भूगोलवेत्ता के लिए दर्पण का उपयोग क्षेत्र के विभिन्न आयामों को देखने के लिए है ।

भूगोल की कुछ महत्वपूर्ण परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं

1. जर्मन भूगोलवेत्ता और आधुनिक भूगोल के संस्थापक अलेक्जेण्डर वॉन हम्बोल्ट ( Allexander Von Humbolt ) के अनुसार ,

” भूगोल प्रकृति के अध्ययन से सम्बन्धित है । “

2. आधुनिक भूगोल के दूसरे संस्थापक तथा प्रसिद्ध जर्मन भूगोलवेत्ता कार्ल रिटर ( Carl Ritter ) के अनुसार ,

” भूगोल का उद्देश्य पृथ्वी के तल का अध्ययन है जो मानव का निवासगृह है । “

3. जर्मन भूगोलवेत्ता अल्फ्रेड हेटनर ( Alfred Hettner ) ने भूगोल को इस प्रकार परिभाषित किया है ,

” भूगोल एक भूविस्तारीय विज्ञान है जिसका उद्देश्य पृथ्वी के तल पर क्षेत्रीय विभिन्नताओं और उनके स्थानिक सम्बन्धों का अध्ययन करना होता है । ”

4. जर्मन भूगोलवेत्ता रिचथोफेन ( Richthofen ) के अनुसार ,

“ भूतल के विभिन्न क्षेत्रों और उनकी सम्पूर्ण विशेषताओं का अध्ययन ही भूगोल है । “

5. अमेरिकी भूगोलवेत्ता बैरोज ( H. H. Barrows ) ने भूगोल को मानव पारिस्थितिकी बताया और भूगोल को इस प्रकार परिभाषित किया

“ भूगोल मुख्य रूप से मनुष्य और उसके पर्यावरण के मध्य सम्बन्धों की व्याख्या करता है । ”

6. अमेरिकी भूगोलवेत्ता रिचर्ड हार्टशोर्न ( Rechard Hartshorne ) की परिभाषा सर्वाधिक मान्य है । उनके अनुसार ,

” भूगोल भूतल के परिवर्तनशील स्वरूप के यथार्थ , क्रमबद्ध तथा तर्कसंगत वर्णन एवं व्याख्या से सम्बन्धित है । ” (

7. अमेरिकी भूगोलवेत्ता ब्रोयक ( O. J.M. Broek ) के अनुसार , ” भूगोल मानवीय संसार के रूप में पृथ्वी की भिन्नता का क्रमबद्ध ज्ञान है । ”

8. अमेरिकी भूगोलवेत्ता एकरमैन ( E.A.Ackerman ) के शब्दों में ,

” भूगोल पृथ्वी के तल पर सम्पूर्ण मानवता तथा उसके प्राकृतिक पर्यावरण को समाहित करते हुए विस्तृत अन्योन्यक्रिया प्रणाली का वैज्ञानिक अध्ययन है । “

9. अमेरिकी भूगोलवेत्ता फिंच एवं ट्रिवार्था ( Finch and Trewartha ) के अनुसार ,

” भूगोल भूतल का विज्ञान है । इसके अन्तर्गत पृथ्वी के तल पर वस्तुओं के वितरण प्रतिरूप तथा प्रादेशिक साहचर्यों का क्रमबद्ध वर्णन एवं व्याख्या सम्मिलित होती है । ” !

10. सोवियत भूगोलवेत्ता जेरासिमोव (P.Gerasimove ) के अनुसार ,

” भूगोल वह विज्ञान है जो भूतल के विभिन्न भागों में प्राकृतिक तथा मानवीय तथ्यों की पारस्परिक अंतक्रियाओं द्वारा निर्मित सम्मिश्रा समाकल प्रदेशों ( complex integral regions ) की व्याख्या करता है । ”

अर्थात

हम भूगोल को इस प्रकार परिभाषित कर सकते हैं ,

” भूगोल वह विज्ञान है जिसमें भूतल पर तथ्यों के स्थानिक वितरण , पारस्परिक सम्बन्धों तथा उनके साथ मानवीय अंतक्रियाओं का क्रमबद्ध अध्ययन किया जाता है । यह मूलतः तथ्यों के क्षेत्रीय वितरण तथा स्थानिक भिन्नताओं के अध्ययन से सम्बन्धित विज्ञान है । ”

भूगोल का विषय – क्षेत्र ( Scope of Geography )

( अ ) भौतिक घटनाओं का अध्ययन ( Study of Physical Phenomena )

1. स्थलमंडल ( Lithosphere )

( i ) पृथ्वी की उत्पत्ति , पृथ्वी की आंतरिक संरचना तथा भूसंतुलन ,

( ii ) भूतल पर परिवर्तन लाने वाले आंतरिक एवं बाह्य बल

( iii ) शैलें , मिट्टी एवं खनिज ,

( iv ) स्थलरूप ( पर्वत , पठार , मैदान ) तंत्र आदि ।

2. जल मंडल ( Hydrosphere )

(i) महासागरीय निताल की बनावट ( उच्चावच )

( ii ) महासागरीय निक्षेप तथा प्रवालभित्ति ,

( iii ) महासागरीय तापमान एवं लवणता

( iv ) महासागरीय जल की गतियाँ – लहरें , ज्वार – भाटा और धारायें ।

( 3 ) वायुमंडल ( Atmosphere )

( i ) वायुमंडल का गठन , सूर्यातप एवं तापमान का वितरण ( ii ) वायुदाब , हवाएं तथा वायुराशियाँ ,

( iii ) आर्द्रता , वर्षा , जलवायु प्रदेश आदि ।

( ब ) जैविक घटनाओं का अध्ययन ( ( Study of Biological Phenomena )

( 1 ) पारिस्थितिकी तथा पारिस्थितिक तंत्र ।

( 2 ) पादप जगत् , प्राणि जगत् तथा बायोम ।

( स ) मानवीय घटनाओं का अध्ययन ( ( Study of Human Phenomena )

( 1 ) मनुष्य एवं पर्यावरण का अंतर्संबंध ( मानव पारिस्थितिकी ) ।

( 2 ) जनसंख्या ( वृद्धि , वितरण , घनत्व , प्रवास , संघटन , जनसंख्या – संसाधन संबंध , जनसंख्या नीति आदि ) ।

( 3 ) मानव अधिवास : ग्रामीण तथा नगरीय अधिवासों की उत्पत्ति एवं विकास , प्रकार , प्रतिरूप , आकारिकी , समस्याएं , नियोजन आदि ।

( 4 ) मानव व्यवसाय या अर्थव्यवस्था – आखेट , वनोद्योग , मत्स्याखेट , पशुपालन , कृषि , खनन , विनिर्माण उद्योग , परिवहन , व्यापार , वाणिज्य , सेवाएं आदि ।

( 5 ) समाज एवं संस्कृति – मानव का विकास , मानव प्रजातियाँ , जनजातियाँ , सामाजिक – सांस्कृतिक प्रक्रियायें , सामाजिक संगठन , सांस्कृतिक ( स्थानिक ) विसरण , सांस्कृतिक परिमण्डल एवं प्रदेश आदि ।

( 6 ) राजनीतिक संबंध – राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय राजनीतिक पर्यावरण , अन्तर्राष्ट्रीय संबंध आदि ।

4. भूगोल की प्रकृति ( Nature of Geography )

( 1 ) भूगोल भूतल का अध्ययन है

  • महान् दार्शनिक तथा भूगोलवेत्ता इमैनुअल कांट ( 1803 ) ने बताया है कि भूगोल पृथ्वी के उस भाग का अध्ययन करता है जो मानव का घर ( home of man ) है ।
  • हम्बोल्ट और रिटर के विचार भी इसी प्रकार के थे । रिचथोफेन ( 1883 ) ने बताया कि भूगोल के अन्तर्गत भूतल के विभिन्न क्षेत्रों का अध्ययन उसकी सम्पूर्ण विशेषताओं के अनुसार किया जाता है
  • हेटनर ( 1905 ) ने भूगोल की व्याख्या क्षेत्र वर्णनी विज्ञान ( chorological science ) के रूप में किया जिसके अन्तर्गत भूतल के क्षेत्रों का अध्ययन उनकी भिन्नताओं और स्थानिक सम्बन्धों की पृष्ठभूमि में किया जाता है ।
  • हेटनर के विचारों से समकालीन यूरोपीय ( जर्मन , फ्रांसीसी , ब्रिटिश आदि ) भूगोलवेत्ता काफी प्रभावित हुए और क्षेत्रीय विभेदीकरण ( Areal differentiation ) पर विचार करते हुए प्रादेशिक अध्ययनों पर बल देने लगे ।

( 2 ) भूगोल अंतर्सम्बन्धों का अध्ययन है.

संसार के सभी भौगोलिक तत्व भौगोलिक चिन्तन का इतिहास चाहे वे भौतिक हों या मानवीय ( सांस्कृतिक ) , जड़ हो या चेतन एक – दूसरे से किसी न किसी रूप में संबंधित हैं और एक – दूसरे को प्रभावित करते हैं । पृथ्वी के तल पर किसी भी तत्व का पृथक् एवं स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है । कोई भी तत्व या तत्व समूह अन्य तत्वों या तत्व समूहों से प्रभावित होता है और उन्हें प्रभावित भी करता है । अतः किसी प्रदेश का वास्तविक भूदृश्य वहाँ के सभी तत्वों के सम्मिलित तथा मिले – जुले प्रभावों का परिणाम होता है । अतः किसी प्रदेश या क्षेत्र के किसी तत्व या घटना के विश्लेषण के लिए यह बताना आवश्यक होता है कि वह किन तत्वों से नियंत्रित है और वे किस प्रकार और कितनी मात्रा में प्रभावित करते हैं । अतः भूगोल विशेषरूप से मानव भूगोल में स्थानिक अध्ययन अंतर्सम्बन्धों के सिद्धान्त के अनुसार किया जाता है । इसे पार्थिव एकता का सिद्धान्त ( Principle of Terrestrial Unity ) भी कहा जाता है ।

  • जर्मन भूगोलवेत्ता हम्बोल्ट , रिटर , रैटजेल आदि ने भौगोलिक अध्ययन में पार्थिव एकता या पारस्परिक सम्बन्धों के सिद्धान्त को प्रमुखता प्रदान की थी ।
  • वे सम्पूर्ण विश्व को उसके व्यक्तिगत तत्वों के रूप में नहीं बल्कि सभी तत्वों की समष्टि के रूप को देखते थे ।
  • मानव भूगोल को परिभाषित करते हुए फ्रेडरिक रैटजेल ने लिखा है कि ‘ मानव भूगोल के दृश्य पर्यावरण से सम्बन्धित होते हैं जो भौतिक दशाओं का एक योग होता है ।
  • बीसवीं शताब्दी के फ्रांसीसी भूगोलवेत्ताओं – लाश , बूंश , डिमांजियां , ब्लांशार आदि ने भौगोलिक अध्ययनों में पार्थिव एकता या अंतसंबंधों के सिद्धान्त को ही आधार बनाया ।
  • वाइडल डी ला ब्लाश के अनुसार , “ मानव भूगोल के तत्त्व पार्थिव एकता से सम्बन्धित हैं और केवल उसी के माध्यम से उनकी व्याख्या की जा सकती है । ” पार्थिव एकता एक सार्वभौमिक सत्य है जो हर देश – काल में विद्यमान रहती है । जिस प्रकार ब्रह्माण्ड में विभिन्न नक्षत्र एक – दूसरे की आकर्षण शक्तियों के कारण संतुलित रहते हैं उसी प्रकार भूतल पर भी विविध प्रकार के तत्व एक दूसरे से घनिष्ट रूप से संबंधित होते हैं ।
  • अमेरिकी विद्वान हंटिंगटन ( Huntington ) के अनुसार भौतिक पर्यावरण के सभी तथ्य एक – दूसरे से प्रभावित तथा सम्बन्धित है ,

( 3 ) भूगोल क्षेत्रीय समाकलन का अध्ययन है

  • बीसवीं शताब्दी के आरंभ से ही भौगोलिक अध्ययन में क्षेत्रीय समाकलन ( एकीकरण ) पर बल दिया जाने लगा ।
  • हेटनर ( 1905 ) के अनुसार भूगोल केवल तत्वों के पारस्परिक सम्बन्धों का अध्ययन करने वाला विज्ञान नहीं है बल्कि यह स्थानिक समाकलन का क्रमबद्ध विज्ञान है ।
  • हम्बोल्ट ने भूगोल को क्षेत्रीय ( स्थानिक ) वितरण का विज्ञान बताते हुए इसमें क्षेत्रीय अंतसंबंध ( spatial inter – relationship ) और क्षेत्रीय अन्तर्निर्भरता ( spatial inter – dependence ) पर सर्वाधिक बल दिया ।
  • कार्ल रिटर पृथ्वी तल को विभिन्न भागों में विभक्त करके एक क्षेत्र ( प्रदेश ) की दूसरे क्षेत्र से तुलना करते थे और क्षेत्रीय अंतसंबंधों की तार्किक व्याख्या करते थे ।

( 4 ) भूगोल एक अन्तर्विषयी विज्ञान है

हेटनर ( 1905 ) ने बीसवीं शताब्दी के प्रथम दशक में ही भूगोल को समन्वित विषय ( integrating discipline ) का स्वरूप प्रदान करने का उल्लेखनीय प्रयास किया था । उन्होंने क्रमबद्ध उपागम के माध्यम से भूगोल को अन्य क्रमबद्ध विज्ञानों से सम्बद्ध किया था । हेटनर के मत की पुष्टि परवर्ती अधिकांश प्रमुख भूगोलवेत्ताओं ने की है । प्रमुख अमेरिकी , पश्चिमी यूरोपीय ( ब्रिटिश , जर्मन , फ्रांसीसी ) , रूसी और भारतीय भूगोलवेत्ता भूगोल को अंतर्विषयी विज्ञान के रूप में ही देखते हैं । हार्टशोर्न , ग्रिफिथ टेलर , कार्ल सावर , वूलरिज , ईस्ट , एस ० पी ० चटर्जी आदि भूगोलवेत्ता इसी विचार के पोषक रहे हैं ।

( 5 ) भूगोल एक अनुप्रयुक्त विज्ञान है

ब्रिटिश भूगोलवेत्ता डडले स्टाम्प ( L. D. Stamp ) का अग्रणीय और सर्वाधिक महत्वपूर्ण योगदान रहा है । खाद्य समस्या के समाधान हेतु सर्वे डायरेक्टर के रूप में उन्होंने ब्रिटेन का भूमि उपयोग सर्वेक्षण कराया और अनुप्रयुक्त भूगोल ( Applied Geography ) नामक पुस्तक भी लिखा । इसके अतिरिक्त उनकी ‘ हमारा विकासशील विश्व ‘ ( Our Developing World ) नामक पुस्तक 1960 में प्रकाशित हुई जिसमें विश्व स्तर पर ज्वलंत समस्याओं जैसे जनसंख्या वृद्धि , भूमि समस्या , भोजन एवं पोषण की समस्या , कृषि दक्षता की माप , जनसंख्या – संसाधन संतुलन आदि विषयों को समाहित किया गया था । अनुप्रयुक्त भूगोल के क्षेत्र में फ्रांस के फिलोपाइनो , हंगरी के जार्ज इनेडी , रूस के डोकुचायेव तथा भारत के एस ० पी ० चटर्जी , आर ० एल ० सिंह तथा मो ० आदि के कार्य विशेष उल्लेखनीय और महत्वपूर्ण माने जाते हैं ।

भूगोल का उद्देश्य ( Aim or Purpose of Geography )

( 1 ) भूतल का अध्ययन ( Study of the Earth’s Surface )

  • कार्ल सावर का मत है कि भूगोल का उत्तरदायित्व क्षेत्रीय अध्ययन है । यह सर्व है कि भूगोल ही एकमात्र विषय है जो विभिन्न देशों और प्रदेशों के विषय में सूचना देता है । कोई अन्य विषय क्षेत्रीय अध्ययन का दावा नहीं कर सकता । ।

( 2 ) क्षेत्रीय भिन्नता का निरूपण ( Representation of Areal Differentiation )

जर्मन भूगोलवेत्ता अल्फ्रेड हेटनर ( 1905 ) ने क्षेत्रीय भिन्नता की सकल्पना को समझाते हुए बताया कि भूगोल पृथ्वी के क्षेत्रों का ज्ञान है और ये क्षेत्र एक – दूसरे से भिन्न होते हैं । उनके अनुसार भूगोल एक क्षेत्र वर्णनी विज्ञान ( Chorological science ) है जिसके अन्तर्गत पृथ्वी के स्थानों और क्षेत्रों की भिन्नता और उनके स्थानिक सम्बन्धों ( spatial relations ) का अध्ययन किया जाता है । प्रसिद्ध फ्रांसीसी भूगोलवेत्ता वाइडल डी ला ब्लाश ने भी भूगोल को स्थानों का विज्ञान र बताया कि विभिन्न स्थानों में भिन्नताएं पायी जाती हैं । इसी प्रकार ब्रिटिश भूगोलवेत्ताओं ने भी मत व्यक्त किये हैं । ब्रिटिश भूगोलवेत्ता समिति ( 1950 ) के अनुसार , भूगोल वह विज्ञान है जो क्षेत्रों की भिन्नता और उनके सम्बंधों के संदर्भ में पृथ्वी तल का वर्णन करता है । ”

( 3 ) मानव गृह के रूप में पृथ्वी का अध्ययन ( ( Study of Earth as the Home of Man )

हार्टशोर्न ने लिखा है कि भूगोल वह विज्ञान है जो भूतल के परिवर्तनशील स्वरूपों की व्याख्या मानवीय संसार ( world of man ) के रूप में करता है । जर्मन भूगोलवेत्ता कार्ल रिटर ( 1862 ) ने भी इसी बात पर बल देते हुए बताया था कि भूगोल में पृथ्वी के उस भाग का अध्ययन किया जाता है जो मानव का निवासगृह ( horner iman ) है । इस प्रकार विदित होता है कि भूगोल का उद्देश्य मानव से सम्बद्ध भू – क्षेत्र की व्याख्या करना है ।

( 4 ) मानव – पर्यावरण संबंध का विश्लेषण ( Analysis of Man – Environment Relation )

भूतल पर भौतिक , जैविक और मानवीय सभी प्रकार के तथ्य पाये जाते हैं जो परस्पर सम्बन्धित होते हैं । पर्यावरण का अभिप्राय उन दशाओं से है जो मनुष्य के चारों ओर व्याप्त होती हैं और मनुष्य को प्रभावित करती हैं । कोई व्यक्ति या मानव समुदाय पृथ्वी के जिस भी भाग में रहता है वह वहाँ के पर्यावरण से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता । मनुष्य के स्वास्थ्य , कार्यक्षमता , व्यवसाय , भोजन , पोशाक , आदतों , व्यवहार और संस्कृति आदि पर पर्यावरण का स्पष्ट प्रभाव दिखायी पड़ता है । वर्तमान मानव अपनी कला कौशल , तकनीक , आवश्यकता तथा अभिरुचि के अनुसार र पर्यावरणीय दशाओं में यथासंभव परिवर्तन करने में सतत तत्पर रहता है ।

( 5 ) क्षेत्र / स्थानिक संगठन ( Spatial Organization )

किसी प्रदेश के प्राकृतिक तथा मानवीय संसाधनों के अनुकूलतम उपयोग की व्यवस्था को क्षेत्र संगठन या स्थानिक संगठन कहा जाता है । पर्यावरण के उस तत्व को संसाधन ( resource ) कहते हैं जो किसी भी रूप में मानव के लिए उपयोगी है अर्थात् जो मानव आवश्यकता की पूर्ति करता है । संसाधनों को प्राकृतिक और मानवीय दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है । प्रकृति द्वारा निर्मित तत्व जैसे स्थलरूप , शैल , खनिज , नदी , झील , सागर , जीवजन्तु , प्राकृतिक वनस्पति आदि प्राकृतिक संसाधन कहलाते हैं ।

( 6 ) मानव कल्याण या लोकहित ( Human Welfare or Public Good )

पिछले तीन – चार दशकों से भौगोलिक अध्ययनों में मानव कल्याण पर विशेष बल दिया जाने लगा है । वर्तमान भूगोलवेत्ता असमानता के प्रश्नों पर ध्यान केन्द्रित करते हुए लोकहित पर विचार करता है । वह मानव कल्याण के दृष्टिकोण से मानवीय क्रियाओं की क्षेत्रीय भिन्नता तथा स्थानिक संगठन पर विचार करता है । इस प्रकार भौगोलिक अध्ययनों में समाजोपयोगी वस्तुओं के वितरण , उपयोग की दशाओं , उपयोगिता की मात्रा आदि पर विशेष ध्यान दिया जाता है । जनहित के दृष्टिकोण से एक भूगोलवेत्ता का उद्देश्य मानव कल्याण से सम्बन्धित विभिन्न पक्षों जैसे निर्धनता , बीमारी , अकाल , अपराध , सामाजिक के विभेद ( जाति , भाषा , वर्ग आदि ) तथा सामाजिक सेवाओं ( शिक्षा , स्वास्थ्य , सफाई , मनोरंजन आदि ) वितरण में पायी जाने वाली असमानता का विश्लेषण करना और इस असमानता को दूर करने के लिए उपयुक्त सुझाव देना होता है ।

भूगोल की शाखाएं एवं उप – शाखाएं ( Branches and Sub – branches of Geography )

भूगोल का अन्य विज्ञानों से संबंध ( relationship of Geography with other science)

सभी तत्व घटनाओं को धरती ने कहीं तो धारी है।

इसलिए सब शास्त्रों से भूगोल की रिश्तेदारी है।।

‘भौगोलिक काव्यांजलि से’।

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