भारत विविधता से परिपूर्ण क्षेत्र है । भौतिक विभिन्नता के साथ जलवायु विविधता ने भारत भूमि पर लगभग सभी प्रकार की मानव प्रजातियों को उत्पन्न कर उनका पालन पोषण किया है। रहने योग्य वातावरण एवं उर्वर भूमि ने सिंधु सभ्यता जैसी पुरातन संस्कृति को जन्म दिया। इस विकसित सभ्यता के पूर्व अर्थात प्रागैतिहासिक काल से ही यह मानव विकास की यह गाथा अनवरत चलती आ रही हैं।
सर हरवर्ट रिसले , हैडन, हटन,इक्सटैट तथा वी०एस० गुहा जैसे विद्वानों ने भारत की मानव प्रजाति के वर्गीकरण का प्रयास किया है।
गुहा ने शारीरिक लक्षणों के आधार पर वैज्ञानिक तथ्यों का सहारा लेते हुए तार्किक ढंग से भारत के मानव प्रजातियों का वर्गीकरण किया। जनसंख्या में प्रजातीय तत्व नाम से इसका प्रकाशन 1949 में हुआ। 1931 की जनगणना को आधार बनाते हुए गुहा ने समस्त भारतीय जनसंख्या को छह प्रमुख प्रजाति वर्गों में वर्गीकृत किया।
- नीग्रिटो
- आद्य ऑस्ट्रेलाइड
- मंगोलॉयड
- भूमध्यसागरीय
- पश्चिम चौड़े सिर वाले
- नार्डिक
- नीग्रिटो
नीग्रिटो
नीग्रोइट महा प्रजाति की एक प्रजाति है। डा० गुहा ने त्रावणकोर तथा को चीन के काडर एवं उराली लोगों के साथ अंडमान निकोबार की प्रजातियों को इनका प्रतिनिधि माना है। इनका कद छोटा, त्वचा रंग गहरा भूरा से काला, लहरदार बाल, मोटे होंठ, छोटा चेहरा आगे की ओर निकला हुआ ललाट इन लोगों की सामान्य विशेषताएं हैं।
आद्य ऑस्ट्रेलाइड
- प्रायद्वीपीय भारत में निवास करने वाली अधिकांश प्रजातियां इस समूह की ही हैं। इसकी त्वचा सामान्यतः काली, बाल घुंघराले और लहरदार, नासिका चोरी तथा चपटी होती है। इनका ललाट उभरा हुआ, मुठ मोटा और चेहरा बाहर की ओर उभरा होता है। शरीर का कद छोटा तथा सिर लंबा होता है।
- डॉक्टर गुहा ने भारत में पाई जाने वाली कई अनुसूचित जातियों में से भी प्रोटो ऑस्ट्रेलियाई लक्षणों को माना है। मजमुदार का भी यही मानना है। अनुमान यह है कि प्राचीन काल में यह प्रजाति लगभग संपूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप पर विद्यमान थी। कालांतर में यह मलाया और पूर्वी द्वीप समूह होते हुए आस्ट्रेलिया तक पहुंच गई।
मांगोलाइड प्रजाति
- मांगोलाइड प्रजाति सर्वप्रथम मध्य एशिया से स्थानांतरित होकर पश्चिमी भारत में आई। उसके बाद हिमालय की उत्तरी तथा पूर्वी पहाड़ियों में प्रवाहित हुई।
- मध्य कद की मांगों लाइट प्रजाति के लोगों के शरीर और चेहरे पर बालों की कमी होती है। चेहरा सपाट तथा कपोलास्थियां उभरी हुई होती और नेत्र तिरक्षे होते हैं।
- मांगोलाइड के भारत में 2 वर्ग पाए जाते हैं।
- पुरामंगोलाइड – इस प्राचीन मांगो लाइड प्रजाति में सारे लक्षण विकसित नहीं होते हैं। चटगांव पहाड़ी में यह प्रजाति पाई जाती है।
तिब्बती मंगोलाइड
यह प्रजाति हिमालय के पर्वतीय प्रदेश मुख्यता सिक्किम, भूटान तथा पश्चिमी हिमालय प्रदेश में निवास करती है। मध्य एवं पूर्वोत्तर एशिया की विशाल भूमि पर रहने वाली मांगो लाइट प्रजाति में सभी लक्षण पाए जाते हैं। यह लंबी सिरे वाली प्रजाति है जिसके शरीर पर रोमनलियो का लगभग अभाव होता है। केवल सिर पर ही बाल विकसित होते हैं। त्वचा का रंग हल्का पीला या भुरा तथा नेत्र तिरक्षे होते हैं। भूमध्यसागरीय प्रजाति 1. पूरा भूमध्यसागरीय प्रजाति – उत्तर भारत की द्रविड़ प्रजाति में लक्षण विद्यमान। त्वचा का रंग भूरा, कद मध्यम , सिर के बाल लहरदार, नासिका मध्यम चौड़ी होती है।
ii. भूमध्यसागरीय प्रजाति
पंजाब से बंगाल तक तथा मध्य प्रदेश एवं महाराष्ट्र में विद्यमान
iii- पूर्वी भूमध्यसागरीय प्रजाति
भूमध्य सागरीय प्रजाति का विकसित रूप।
पंजाब, हरियाणा, राजस्थान तथा पश्चिम उत्तर प्रदेश में इस प्रजाति की लोगों की संख्या अधिक है।
पश्चिमी चौड़ी सिर वाली प्रजाति
A. अल्पाइनाइड – मध्य कड़ वाली प्रजाति । इस प्रजाति के प्रतिनिधि देश के उत्तर व दक्षिण दोनों भागों में पाए जाते हैं।
B. दिनारिक – लंबे कद वाली प्रजाति। पश्चिमी हिमालय प्रदेश, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, गुजरात, महाराष्ट्र तथा तमिलनाडु में यह प्रजातियां पाए जाते हैं।
C. आर्मीनाइड – भारतीय पारसी में इनके लक्षण पाए जाते हैं।
नॉर्डिक प्रजाति
सबसे बाद में भारत में आई प्रजाति जो पश्चिमोत्तर भारत में है।