पेंक ने डेविस के समय आधारित अपरदन चक्र की आलोचना करते हुए स्थलाकृति के विकास से संबंधित भू आकृतिक विश्लेषण नामक संकल्पना का प्रतिपादन कियाा। इनका मॉडल समय स्वतंत्र भू-आकृति मॉडल हैै। इन्होंने कहा कि स्थल रूप संरचना प्रक्रम तथा अवस्था का प्रतिफल न होकर उत्थान की दर तथा अपरदन एवं पदार्थों के विस्थापन की दर के बीच के अनुपात का प्रतिफल होता है।
स्थलरूप= उत्थान की दर/अपरदन एवं पदार्थों के विस्थापन की दर
इन्होंने अपने मॉडल को तीन वर्गों तथा पांच उपवर्गो (द्वितीय अवस्था को इन्होंने तीन उपवर्गों में वर्गीकृत किया)। इन्होंने उत्थान से पूर्व के स्थल रूप व स्थल खंड के लिए “प्राइमारंप ” शब्द का प्रयोग किया।
इनके अनुसार उत्थान प्रारंभ में मंद गति से होता है इसके बाद त्वरित गति से फिर बाद में सामान्य दर से फिर घटती दर से अंत में उत्थान समाप्त हो जाता है।
इन्होंने अपनी संकल्पना में चक्र शब्द का प्रयोग नहीं किया । अवस्था के स्थान पर पेेंक ने इंटि्वकलुंग शब्द का प्रयोग किया जिसका अर्थ विकास होता है।
इन्होंने तीनों प्रमुख अवस्थाओं के लिए अग्रलिखित शब्दावली का प्रयोग किया है।
आफस्तीजिंडे इंटि्वकलुंग
ग्लीखफर्मिंग इंटि्वकलुंग
अब्स्तीजिंडे इंटि्वकलुंग
आफस्तीजिंडे इंटि्वकलुंग अ/2 :-
इससे तात्पर्य स्थलाकृति के तीव्र गति के विकास की अवस्था से है । प्रारंभ में स्थलखण्ड में मंद गति से उत्थान होता है बाद में उत्थान गति की दर अधिक हो जाती है उत्थान के फलस्वरुप जलमार्ग के ढाल प्रवाह वेग एवं गति ऊर्जा में वृद्धि के कारण नदियां तीव्र गति से घाटीगर्तन द्वारा अपनी घाटी को गहरा करती है।
किंतु निम्नवर्ती अपरदन के तुलना में उत्थान अधिक होता है जिससे निरपेक्ष उच्चावच्च में वृद्धि होती जाती है घाटी गर्तन में सतत वृद्धि के कारण सापेक्ष उच्चावच में भी लगातार वृद्धि होती है लगातार घाटी गर्तन के कारण घाटी के पार्श्व ढाल में निरंतर वृद्धि होती है। समय के साथ अधिक उत्थान तथा अपरदन के कारण प्राथमिक प्राइमारम्प पर अनेक सोपानों का निर्माण हो जाता है विभिन्न तलों पर विकसित इन सोपानो को पेंंकने ( पिडमांट ट्रेपेन) पिडमांट फ़्लैश कहा ।
गलीख फार्मिंग इंटिवकलूंग :-
इस अवस्था को पेंक ने तीन उप वर्गों में
वर्गीकृत किया है इस अवस्था से तात्पर्य समान दर से विकास की अवस्था से है उत्थान की दर एवं निम्नीकरण की दर के आधार पर प
पेंक ने उपरोक्त उप वर्गों में इस अवस्था में विभाजित किया है।
सापेक्षिक उच्चावच में कोई परिवर्तन ना होने के कारण पेक ने इसे गलीख फार्मिंग नाम दिया।
प्रवस्था:- (अ)
इस प्रवस्था में उत्थान कि दर निम्नवर्ती अपरदन की दर से अधिक है।
निरपेक्ष उच्चावच= उत्थान की दर निम्न वर्ती की दर से
प्रवस्था ( ब) :-
निरपेक्ष और सापेक्ष दोनों स्थिर समानांतर और निवर्तन के कारण घाटी के पार्श्व ढाल अभी भी सीधा रहता है।
प्रवस्था : (स ) –
सापेक्ष उच्चावच स्थिर किंतु निरपेक्ष उच्चावच में गिरावट प्रारंभ।
आबस्ती जिंडे इंटिवकलूंग : ( स / 2)-
इसका तात्पर्य घटती दर की विकास की अवस्था से है। इस अवस्था में सापेक्ष उच्चावच और निरपेक्ष उच्चावच में तेजी से कमी आती है घाटी के पार्श्व ढाल मैं अभी समानांतर नीवर्तन चलता रहता है अब घाटी के पार्श्व ढाल में दो भाग होते हैं। ऊपर ही खड़े ढाल को इन्होंने गुरुत्व ढाल अथवा वाशचुंजेन कहा । तथा निचले भाग को वाशढाल या हाल्डेन हैंग कहा ।
समिपि घाटियो के गुरुत्व ढाल के समानांतर निवर्तन होने के कारण प्रतिछेदन के स्वरूप जल विभाजको के
शिखर की ऊंचाई में तेजी से हास्य होता है। ऊपरी गुरुत्व ढाल में कमी के कारण हाल्डेन हैंग में लगातार कमी होती है।
इस प्रवस्था के अंतिम चरण में वाशचुंजेन में इतना हास्य हो जाता है की वाह शंक्वाकार अवशिष्ठ पहाड़ियों में बदल जाते हैं इसको पेंक ने इंसलबर्ग कहां है अपरदन चक्र के अंत में जब इंसेलवर्ग भी समाप्त हो जाते हैं और समस्त स्थल खंड पर अवतल ढाल वाले हाल्डेन हैंग का विस्तार हो जाता है तब इस तरह के विस्तृत सतह को पेंक ने इंड्रमप कहा ।
डेविस और पेंक के अपरदन चक्र का तुलनात्मक अध्ययन