परिचय
वर्तमान मानव समाज अपने सभ्यता के विकास क्रम में उच्चतम पैदान पर भले ही पहुंच गया है किंतु उसने भौतिक उन्नति के साथ-साथ अनेक प्रलयकारी आपदाओं को भी आमंत्रण दे दिया है जलवायु परिवर्तन जनित आपदाएं मानव जनित बीमारियां ( कोरोना वायरस) आपदाएं विश्व स्तर पर पर्यावरणीय संकट उत्पन्न कर रही हैं । इन्हीं चुनौतियों को देखते हुए पर्यावरण या नियोजन एवं प्रबंधन वर्तमान सदी की सबसे बड़ी आवश्यकता बन गई है।
पर्यावरण नियोजन एवं प्रबंधन का अर्थ
पर्यावरणीय नियोजन से तात्पर्य विकास कार्यों के लिए पृथ्वी के नव्य एवं अनव्य संसाधनों का विभिन्न रूप में उपयोग करना , दुर्लभ एवं बहुमूल्य साधनों का संरक्षण तथा स्वस्थ जीवन के लिए पर्यावरण गुणवत्ता का परीक्षण। इसी तरह विभिन्न वैकल्पिक प्रस्तावों में से निर्धारित व इच्छित उद्देश्यों के पूर्ति के लिए उपयुक्त प्रस्ताव का विवेकपूर्ण चयन करना ही पर्यावरणीय प्रबंधन है।
पर्यावरणीय प्रबंधन से संबंधित तथ्य
- पर्यावरण के साथ विशिष्ट समायोजन
- अविवेकपूर्ण दोहन पर नियंत्रण
- जैविक व अजैविक संघटकों की सुरक्षा
- प्रदूषकों के उत्सर्जन पर नियंत्रण
- पर्यावरणीय तत्वों के गुणों में वृद्धि करना
- पर्यावरणीय शिक्षा व अनुसंधान को बढ़ावा देना
- सामूहिक उत्तरदायित्व व भागीदारी की आवश्यकता की समझ
पर्यावरण प्रबंधन के परिस्थितिकी आधार
- पृथ्वी पर अनंत ज्ञात अज्ञात संसाधन है। प्रत्येक संसाधन की मात्रा सीमित है।
- संसाधनों का निर्माण तथा परितंत्र स्थिरता के लिए प्रकृति सदैव प्रयत्नशील रहती है। किंतु इसमें इसे लाखों करोड़ों वर्ष खर्चा करना पड़ता है।
- फेंकी गई वस्तु अदृश्य नहीं होती है।
- संसार की समस्त वस्तुओं की अपनी विशिष्ट उपादेयता है कोई भी वस्तु का अस्तित्व निरर्थक नहीं है।
- पारितंत्र का दीर्घकालिक जीवन होता है।
- प्रत्येक परितंत्र में अनेक समस्याएं होती हैं। था प्रत्येक समस्याएं एक दूसरे से संबंधित होती हैं।
- जीवीत प्रक्रम चरम घटनाओं की प्रचंडता में वृद्धि कर देते हैं।
- परितंत्र की अपनी उत्पादकता है तथा परितंत्र में निरंतर ऊर्जा प्रवाहित होता रहता है।
- हमारी पृथ्वी अमूल्य है इसकी सुरक्षा करना नितांत आवश्यक है।