नव नियतिवाद मानव प्रकृति के संबंधों पर आधारित ऐसी विचारधारा है जो नियतवाद एवं संभववाद जैसी अतिशयी विचारधाराओं के विपरीत मध्यम मार्ग का अनुसरण करती है। जहां नियतिवादी मनुष्य को दास के रूप में तथा संभव आदि मनुष्य को विजेता के रूप में प्रदर्शित करते हैं वही नव नियतिवादी मानव एवं प्रकृति के बीच ऐसे संबंधों की कल्पना करते हैं जो सामंजस्यता पर आधारित हो अर्थात नियतिवादियों की तरह अनुकूल एवं नियंत्रण शब्द नहीं बल्कि समायोजन शब्द को महत्व प्रदान करते हैं। ग्रिफिय टेलर को नव-नियतिवाद का प्रमुख प्रवर्तक माना जाता है।
वे नियंत्रण के स्थान पर प्रकृति के प्रभाव की चर्चा करते हैं उनका मानना था कि मानव पर पर्यावरण प्रभाव की पूर्णत: उपेक्षा नहीं की जा सकती है भले ही उसकी तीव्रता में कमी की जा सकती है आज भी सहारा एवं पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के मरुस्थलो तथा अंटार्कटिका जैसे हिमाच्छादित क्षेत्रों में प्रकृति की दासता को स्वीकार करना पड़ता है उनका मानना था कि मानव एक ट्रैफिक पुलिस के समान है जो यात्रियों को चौराहे पर नियंत्रित तो करती है लेकिन उनके गंतव्य को नहीं बदलती है यात्रियों को जिस प्रकार से यातायात के नियमों का पालन करना चाहिए उसी तरह मनुष्य को भी प्रकृति के नियमों का पालन करना चाहिए अन्यथा उसे किसी अज्ञात कठिनाइ या दुर्घटना का शिकार होना पड़ सकता है ।
टेलर की रुको एवं जाओ की विचारधारा इसी तरह संकेत करती है चार्ल्स, टैथम , सावर, हरबर्टसन आदि ने भी प्रकृति के समायोजन पर बल दिया है वर्तमान संदर्भ में यह विचारधारा व्यावहारिक एवं प्रासंगिक तो है ही विश्व के लिए वाध्यकारी भी होनी चाहिए मनुष्य ने अपनी उपभोगवादी प्रवृत्ति के कारण प्रकृति के साथ जो खिलवाड़ किया है प्रकृति ने अपना रौद्र रूप धारण कर लिया है यदि हमने अपना स्वभाव नहीं बदला तो वह अनेक प्रकार की आपदाओं एवं विपदाओं के रूप में हमें नष्ट कर देगी। वर्तमान के समय में अनेक आपदाओं के रूप में उसने अपना रौद्र रूप दिखा भी दिया है, अब मनुष्य के हित में है कि वह प्रकृति के इस खतरनाक संकेत को समझे। वैज्ञानिक नियतवाद या रुको और जाओ नियतवाद नव- निश्चयवाद या नव- निश्चयवाद या नव- पर्यावरणवाद ।
जार्ज टैंथम केे अनुसार – नियंत्रण के स्थान पर प्रभाव एवं प्रभाव के स्थान पर समायोजन पर बल दिया जाना चाहिए। जिसे जॉर्ज टैंथम व्यावहारिक संभववाद कहा।