ज्वार भाटा(Tides and Ebb)
ज्वार भाटा अन्य महासागरीय गतियो यथा लहरें महासागरीय जलधारा सुनामी की तरह अत्यंत महत्वपूर्ण महासागरीय गतिविधि है। इसके कारण महासागर का संपूर्ण जल अर्थात महासागरीय सतह से लेकर नितल तक प्रभावित होता है। सूर्य और चंद्रमा की आकर्षण शक्ति के कारण सागरीय जल के ऊपर उठने तथा आगे बढ़ने को ज्वार तथा सागरीय जल के नीचे गिरने तथा पीछे लौटने को भाटा कहते हैं।
हालांकि ज्वार की उत्पत्ति में सूर्य एवं चंद्रमा दोनों की आकर्षण शक्ति का प्रभाव पड़ता है किंतु सूर्य की तुलना में चंद्रमा के पृथ्वी के निकट स्थित होने के कारण चंद्रमा की आकर्षण शक्ति का अधिक प्रभाव होता है।
ज्वार की उत्पत्ति-
पृथ्वी का व्यास 12800 किलोमीटर है। परिणाम स्वरूप पृथ्वी की सतह चंद्रमा की केंद्र की अपेक्षा 6400 किलोमीटर नजदीक है।
उल्लेखनीय है कि चंद्रमा की केंद्र पृथ्वी के केंद्र से 384000 किलोमीटर दूर है तथा दोनों की सतह के बीच की दूरी 377600 किलोमीटर है। अतः स्पष्ट है कि चंद्रमा के सामने स्थित पृथ्वी की सतह की तुलना में पृथ्वी की विपरीत सतह 390400 किलोमीटर दूर स्थित है।
अतः चंद्रमा के सामने स्थित भाग पर चंद्रमा की आकर्षण शक्ति का सर्वाधिक प्रभाव पड़ेगा और इस तरह उच्च ज्वार का अनुभव किया जाएगा। चंद्रमा के केन्द्रोन्मुख गुरुत्वाकर्षण बल की प्रक्रिया स्वरूप उत्पन्न केंद्राप्रसारित बल के कारण पृथ्वी की सतह पर उच्च ज्वार का अनुभव किए जाने वाले के विपरीत स्थान का निम्न ज्वार का अनुभव किया जाता है।
ज्वार का समय-
प्रत्येक स्थान पर सामान्यतया दिन में दो बार ज्वार आता है क्योंकि पृथ्वी अपने स्थान पर 24 घंटे में एक पूर्ण चक्कर लगा लेती है। और इस तरह प्रत्येक 12 घंटे पर ज्वार का अनुभव किया जाना चाहिए। परंतु वास्तव में ऐसा होता नहीं है क्योंकि ज्वार केंद्र जब तक
परिणाम स्वरूप उस विशिष्ट ज्वार केंद्र को चंद्रमा के सम्मुख पहुंचने में 52 मिनट का अतिरिक्त समय लगता है और इस तरह ज्वार केंद्र को चंद्रमा के स्थान केंद्र पर पहुंचने के लिए 24 घंटे 52 मिनट का समय लगता है। ठीक उसी समय ज्वार केंद्र के विपरीत सतह पर 26 मिनट की देरी से ज्वार आता है।
पृथ्वी पश्चिम से पूर्व चक्कर लगाती है परिणाम स्वरूप ज्वार केंद्र पूरब से पश्चिम दिशा में अग्रसर होते हैं इसी तरह प्रत्येक स्थान पर ज्वार के बाद 6 घंटा 13 मिनट बाद भाटा आता है।
सरल शब्दों में प्रत्येक स्थान पर 12 घंटा 26 मिनट में ज्वार आएगा वहीं 6 घंटा 13 मिनट बाद भाटा आएगा।
ज्वार के प्रकार-
पूर्ण अथवा दीर्घ ज्वार – सिजिगी की स्थिति में सूर्य, पृथ्वी चंद्रमा के एक सीधी में स्थित होने के कारण दीर्घ ज्वारआता है। उल्लेखनीय है कि जब सूर्य पृथ्वी चंद्रमा एक सीधे स्थित होती है तो वह स्थिति यूति (conjunction) कहलाती है।
जबकि सूर्य और चंद्रमा के बीच पृथ्वी की स्थिति को व्यूति के नाम से जाना जाता है इसी यूति, वियुति के सम्मिलित रूप को सिजिगी कहते हैं।
यूति की स्थिति अमावस्या तथा वियुति की स्थिति पूर्णमासी को होता है।
यह ज्वार सामान्य ज्वार से 20% ऊंचा होता है।
लघु ज्वार –
प्रत्येक मास के शुक्ल पक्ष व कृष्ण पक्ष्ष, सप्तमी, अष्टमी को सुुल चंद्रमा पृथ्वी की समकोणीक स्थिति के कारण ज्वारीय शक्ति बढ़ जाती है जिससे लघु ज्वार आता है। यह ज्वार सामान्य से 20% नीचे होता है
उपभू एवं अपभू ज्वार –
जब सूर्य चंद्रमा के निकटतम 356000 किलोमीटर स्थिति में होता है तो उपभू स्थिति के कारण चंद्रमा की ज्वारी शक्ति सर्वाधिक होती है। फलत: उच्च अथवा दीर्घ ज्वार आता है उसी को उपभू या भूमि नीच ज्वार कहते हैं। इसके विपरीत जब चंद्रमा पृथ्वी से अधिकतम दूरी 407000 किलोमीटर अर्थात अपभू की स्थिति में होता है तो उस समय चंद्रमा की ज्वारीय शक्ति निम्न हो जाती है उस स्थिति में आने वाला ज्वार को लघु ज्वार, भूमि ज्वार अथवा अपभू ज्वार कहते हैं।
अयन वित्तीय तथा भूमध्य रेखीय ज्वार –
कर्क रेखा तथा मकर रेखा पर चंद्रमा की लंबवत होने की स्थिति में आने वाली ज्वार को अयन वित्तीय ज्वार कहते हैं। यह घटना महीने में दो बार घटित होती है क्योंकि चंद्रमा एक मास में एक बार कर्क रेखा के पास होता है तथा एक बार मकर रेखा के पास होता है। जब चंद्रमा भूमध्य रेखा पर लंबवत होता है तो दैनिक असमानता लुफ्त हो जाती है और दो उच्च ज्वारों तथा दो निम्न ज्वारों की ऊंचाई समान हो जाती है। इस तरह चंद्रमा की भूमध्य रेखा पर लंबवत होने की स्थिति में आने वाली ज्वार को भूमध्य रेखीय ज्वार कहते हैं।
ज्वार भाटा की उत्पत्ति से संबंधित परिकल्पनाएं –
- लाप्लास की गतिक परिकल्पना(1755)
- ह्वेल(1836) तथा एयरी (1842) की प्रगामि तरंग सिद्धांत परिकल्पना
- न्यूटन का संतुलन सिद्धांत(1687)
- उल्लेखनीय है कि एयरी के प्रगति तरंग सिद्धांत को नहर परिकल्पना के नाम से जाना जाता है।
न्यूटन का संतुलन सिद्धांत
न्यूटन के संतुलन सिद्धांत के अनुसार महासागर में जलीय सतह पर पृथ्वी, चंद्रमा सूर्य के पारस्परिक आकर्षण बल के सम्मिलित प्रभाव से लंबवत गति के द्वारा ज्वार भाटा की उत्पत्ति होती है। वास्तव में न्यूटन का ज्वार भाटा की उत्पत्ति से संबंधित परिकल्पना गुरुत्वाकर्षण बल पर आधारित है।उनके अनुसार चंद्रमा के सम्मुख पृथ्वी के सतह पर चंद्रमा के आकर्षण बल का प्रभाव पृथ्वी के अपकेंद्रीय बल के अधिक होने के कारण जल स्तर में वृद्धि के कारण प्रत्यक्ष ज्वार की उत्पत्ति होती है।
वहीं पृथ्वी की जो सतह चंद्रमा के विमुख होता है वहां पृथ्वी के अभिकेंद्रीय बल का प्रभाव चंद्रमा के आकर्षण बल के अधिक होने के कारण अप्रत्यक्ष ज्वार की उत्पत्ति होती है।
इस तरह 180 अंश देशांतर रेखा के दूरी पर एक ही समय दो-दो ज्वार की उत्पत्ति होती है।
इन दोनों ज्वारो के मध्य खिंचाव होने से जल स्तर में कमी के कारण भाटा की उत्पत्ति होती है।
इस तरह न्यूटन के संतुलन सिद्धांत के अनुसार चंद्रमा के आकर्षण बल एवं पृथ्वी के अभिकर्षण बल से उत्पन्न ज्वारोत्पादक बल के द्वारा ज्वार भाटा की उत्पत्ति होती है।
आलोचना-
न्यूटन ने अपने सिद्धांत के द्वारा ज्वार भाटा की उत्पत्ति का वैज्ञानिक विश्लेषण किया है फिर भी इनके सिद्धांत के द्वारा किसी स्थान पर 24 घंटे में दो से अधिक बार या एक बार ज्वार के आने को स्पष्ट नहीं किया जा सकता। इनके अनुसार पृथ्वी जल से निर्मित समांगी सतह है जबकि पृथ्वी स्थल व जल से निर्मित असमांगी सतह है।
इनके अनुसार ज्वार की उत्पत्ति के कारण जल के खींचने से भाटा की उत्पत्ति होती है जबकि लंबवत दिशा में लगने वाले ज्वारोत्पादक बल के द्वारा जलीय सतह पर क्षैतिज गति से उत्पन्न नहीं हो सकती है।
इसी तरह न्यूटन ने यह कहा की एक देशांतर पर स्थित सभी अक्षांशों पर ज्वार