चिन्तन

चिन्तन

आधुनिक फ्रांसीसी भूगोलवेत्ता

  परिचय – आधुनिक भूगोल के विकास में फ्रांस की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। एलिस रेक्लेस ने अपने कार्यों के द्वारा फ्रांस में आधुनिक भुगोल का सूत्रपात किया। वाइडल डी ला व्लाशं तथा ब्रुुंश ने फ्रांस में आधुनिक भूगोल के विकास में प्रमुख भूमिका अदा की।उपनिवेश एवं प्राकृतिक संसाधनों की खोज के कारण फ्रांस में भूगोलवेताओं के कार्यों का महत्व काफी बढ़ गया।

 प्रमुख फ्रांसीसी भूगोलवेत्ता

  • एलिस रेक्लेस
  • वाइल्ड डी ला ब्लाश
  • जीन ब्रूंश
  • अल्बर्ट डिमांजिया
  •  इमैनुअल डी मार्टोन
  • राउल व्लांशर
  • पियरे डिफांटे
  • मैक्सिमिलें सोरेन
  • एण्डी सींग फ्रीड
  • जेक्विस अंसेल
  • हेनरी वैलिंग
  • एंड्रीचोले
  • पियरेजार्ज
  • जीन गाटमैन

           प्रमुख भूगोलवेताओं का संक्षिप्त योगदान

    एलिस रेकलेस

  • संस्थापक फ्रांसीसी भूगोलवेत्ता

पुस्तक 

  • पृथ्वी एवं उसके निवासी
  • विश्व का नवीन भूगोल
  • ला टैरी

     वाइडल डी ला ब्लाश

  • ‘एनल्स डी ज्योग्राफि’ पत्रिका के संस्थापक

पुस्तक

  • ह्यूमन ज्योग्राफी ( principal de human geography)
  • ज्योग्राफी यूनिवर्सल
  • फ्रांस का भूगोल

ब्लाश की प्रमुख संकल्पनाएं

  • संभववाद की संकल्पना
  • पार्थिव एकता का सिद्धांत
  • पेज या लघु प्रदेश की संकल्पना – स्थानिक सामाजिक संगठन सांस्कृतिक समूह जो कि सांस्कृतिक भू दृश्य का परिचायक
  • विशिष्ट जीवन पद्धति या जेनेर द वीये
  • Nature is never more than advisor संभववाद के समर्थन में कही गई इनकी प्रमुख उक्ति है।

भूगोल में ब्लाश का योगदान
एलिस रेक्लेस के बाद ब्लाश फ्रांस के संस्थापक भूगोलवेत्ता थे। प्ररवर्ती भूगोलवेत्ताओ ने उनके द्वारा दिए गए विचारों को फैलाने का कार्य किया। उन्होंने भूगोल विशेषकर मानव भूगोल के विकास में प्रमुख भूमिका अदा की। जर्मनी के बाद तत्कालीन समय में भूगोल के विकास में फ्रांस में अतुलनीय योगदान दिया। जिनके मूल में ब्लाश ही थे। कारक और शर्ट इन्होंने अपनी पुस्तक principle Geography human में अपने विचारों का संकलन किया। मार्टोने ने इस पुस्तक को प्रकाशित किया।
Geography universal ( विश्व भूगोल )
ब्लाश की प्रमुख संकल्पनाएं
संभववाद की प्रमुख संकल्पनाएं – ब्लाश संभववाद के प्रतिपादक और नियत वाद विचारधारा के कूट आलोचक थे। ब्लाश का मानना था कि “प्रकृति की भूमिका मानव जीवन में सलाहकार से अधिक नहीं है “ । “nature is never than more advisor “ ।


पार्थिव एकता का सिद्धांत /अंतरराष्ट्रीय संबंध का सिद्धांत

ब्लाश पार्थिव एकता या अंतर्संबंध के सिद्धांत को मानव भूगोल का प्रमुख सिद्धांत मानते थे।उनका मानना था कि पार्थिव एकता एक सार्वभौमिक सत्य है जो प्रत्येक देश काल में विद्यमान रहती है जिस प्रकार आकाश में विभिन्न आकाशीय पिंड एक दूसरे के प्रति गुरुत्वाकर्षण के कारण संतुलित रहते हैं उसी प्रकार भूतल पर भी विभिन्न प्रकार के भौगोलिक तथा एक दूसरे से संबंधित होते हैं।


लघु प्रदेश या पेज़ की संकल्पना

ब्लाश ने पेज नामक संकल्पना के माध्यम से फ्रांस में प्रादेशिक अध्ययन को बढ़ावा दिया उनका मानना था कि दीर्घकालीन विकास क्रिया में एक समुदाय का स्थानीय पर्यावरण से गहन संबंध स्थापित हो जाता है । वह अंतर्संबंध इतना प्रगढ हो जाता है कि मानव का एक विशिष्ट पहचान बन जाता है । इसी अलग-अलग संस्कृतिक सामाजिक सांस्कृतिक समूह वाले निवास क्षेत्र को ब्लाश ने पेज कहा ।

विशिष्ट जीवन पद्धति-

ब्लाश का मानना था कि एक ही प्रकार के पर्यावरण में निरंतर कई पीढ़ी तक रहता चला आ रहा मानव समुदाय अपने सामूहिक प्रयास से एक विशिष्ट सामाजिक जीवन पद्धति विकसित कर लेता है। इसी विशिष्ट जीवन पद्धति Genere de vie “जेंनेर द वी “ कहा ।
मानव भूगोल के अन्य पक्षों पर ब्लाश के विचार –

ब्लाश मरणोपरांत प्रकाशित उनकी पुस्तक मानव भूगोल के तथ्यों को 3 वर्ग में विभाजित किया गया –
जनसंख्या
सांस्कृतिक तथ्य
यातायात के साधन

ब्लाश ने मानव भूगोल के विकास में फ्रांस को प्रमुख स्थान पर पहुंचा दिया अन्य प्रमुख फ्रांस भूगोलवेत्ता जीन ब्रुन्श, डिमान्जिया, माइक्रोन आदि भूगोलवेत्ता ब्लाश द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों, संकल्पनाओं एवं उपागमो को संपूर्ण फ्रांस में फैलाने का काम किया। ब्लाश द्वारा प्रतिपादित संभवाद की परिकल्पना पार्थिव एकता का सिद्धांत तथा क्रियाशीलता के सिद्धांत में   मानव भूगोल को एक दिशा व दशा प्रदान किया।

जीन ब्रूशं

  • ला ब्लांश के शिष्य तथा फ्रांस के महान भूगोलवेत्ता

     प्रमुख संकल्पनाएं

    1- पार्थिव एकता का सिद्धांत

    2- क्रियाशीलता का सिद्धांत

    3- मानव भूगोल का वर्गीकरण

  मानव भूगोल का वर्गीकरण

  A- सभ्यता के विकास के आधार पर

  i- प्राथमिक आवश्यकता का भूगोल- भोजन, वस्त्र, आश्रय

ii- भू शोषण का भूगोल – पशुपालन, कृषि खनन, उद्योग संबंधित क्रियाएं

iii – सामाजिक भूगोल – श्रम विभाजन, नागरिक व्यवस्था, अंतर विभाजन, सहकारिता।

iv – राजनैतिक एवं ऐतिहासिक भूगोल – इसके अंतर्गत ब्रुंश ने राजनीति व प्रशासनिक तथ्यों तथा ऐतिहासिक घटनाओं से संबंधित तथ्यों को सम्मिलित किया।

   B- यथार्थवादी वर्गीकरण

i – मिट्टी के अनउत्पादक व्यवसाय संबंधी तथ्य -गृह एवं राजमार्ग

ii- पौधों एवं पशुओं पर विजय संबंधि तथ्य- कृषि, पशुपालन, घरेलू करण

iii- विनाशकारी अर्थव्यवस्था संबंधि तथ्य- खनिज तथा पौधों एवं पशुओं का विनाश। इस प्रकार की अर्थव्यवस्था को उन्होंने लुटेरी अर्थव्यवस्था कहा ।

      प्रमुख पुस्तकें

  • ला ज्योग्राफी ह्यूमने । जिसका अंग्रेजी संस्करण ह्यूमन जियोग्राफी के नाम से प्रकाशित किया गया।
  • ला ज्योग्राफी डी ला इतिहास अर्थात इतिहास का भूगोल
  • ईशा वूमेन की पुस्तक New world का फ्रांसीसी अनुवाद प्रकाशित कराया।

   अल्बर्ट डिमांजिया

  • मानव भूगोल के विकास में योगदान।
  • पिकार्डी के प्रादेशिक भूगोल नामक शोध प्रबंधन भूगोल जगत में अत्यधिक सम्मानित।
  • मानव भूगोल की समस्या इनकी प्रमुख पुस्तक(पिकार्डी)

इमैनुअल डी मार्टोन

  • ट्रेट जी ज्योग्राफि फिजिक ( भौतिक भूगोल के लक्षण) इनकी प्रमुख पुस्तक
  • मार्टोन ने ब्लास के द्वारा लिखी गई अध्ययन सामग्री को मानव भूगोल के सिद्धांत नाम से प्रकाशित कराया।

    मैक्सिमिलें सोरे

   पुस्तक – foundation of human geography

         जैक्वीस आंसेल

  • जिओ पॉलिटिक अथवा राजनैतिक नामक पुस्तक लिखी

  लुसियन गालो

  • पुनर्जागरण कालीन भूगोल इसकी प्रमुख पुस्तक

    राउल ब्लांशार

  • नगरीय भूगोल का विधि तंत्र पुस्तक।

एण्डी सीगृफ्रीड 

  • निर्वाचन भूगोल का जनक

         जीन गाट मैन

  • मेगालोपोलिस शब्द का प्रयोग । उल्लेखनीय है कि यह शब्द 50 लाख व उससे अधिक जनसंख्या वाले नगरों के लिए प्रयुक्त होता है

फ्रेंडरिक लीप्ले

  • स्थान- कार्य – लोक ( परिवार) संकल्पना का प्रतिपादन

पियरे जार्ज

  सामाजिक भूगोल ( Sociol geography) इनकी प्रमुख पुस्तक।   

       प्रमुख फ्रांसीसी भौगोलिक विचारधारा

  संभववाद- मानव क्रियाकलापों को अत्यधिक महत्व। इस विचारधारा के अनुसार मनुष्य प्रकृति के अधीन नहीं है। वह अपने कौशल का उपयोग करते हुए सांस्कृतिक भू दृश्य का विकास कर सकता है। उल्लेखनीय है कि संभववाद शब्द का सर्वप्रथम उपयोग लुसियन फैब्रैै ने किया उन्होंने अपनी पुस्तक इतिहास की भौगोलिक भूमिका में संभववाद की व्याख्या की। उन्होंने संभववाद की संकल्पना को स्पष्ट करते हुए कहा कि कहीं भी अनिवार्यताएं नहीं बल्कि सर्वत्र संभावनाएं और मनुष्य इन संभावनाओं के स्वामी के रूप में उनके प्रयोग का निर्णायक है। इसी तरह ब्लॉस ने कहा कि nature is never than advisor

अन्य तथ्य

  • अन्सेल की पुस्तक यूरोप का राजनीतिक भूगोल
  • डुबाय ने औपनिवेशिक भूगोल के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया
  • औपनिवेशिक भूगोल हार्डी की महत्वपूर्ण पुस्तक है।
  • फ्रेंच आल्प्स ब्लांचर्ड का प्रमुख ग्रंथ हैं।
  • गालो ने पेरिस का नगरीय भूगोल नामक पुस्तक लिखा।

   अमेरिकन भूगोलवेत्ता

 संयुक्त राज्य अमेरिका में भौगोलिक चिंतन को विज्ञान की आधुनिक शाखा के रूप में विकसित किया गया। सेेलसेेवरी की अध्यक्षता में शिकागो विश्वविद्यालय भूगोल के स्वतंत्र विभाग की स्थापना की गई।

इससे वहां पर भौगोलिक अध्ययन और शोध कार्यों में तीव्र गति हुई।

   अमेरिकन भूगोलवेत्ता

  • अर्नाल्ट गुयोट
  • चार्ज पाराकिन्श मार्स
  • डब्लू एम डेविस
  • मार्क जेफरसन
  • एलेन चर्चिल सेम्पुल
  • एल्सवर्य हंटिंगटन
  • ग्रिफिथ टेलर
  • ईशा वोमेन
  • कार्ल सावर
  • रिचर्ड हार्टशार्न
  • डॉक्टर व्हिटलसी
  • वर्गेस
  • जिफ
  • मर्फी
  • होमर होयट
  • हैरिस और उलमैन
  • हारवुड एवं बायसे
  • वेहरवीन 
  • सी डी हैरिश
  • विक्टर जोंस
  • ट्रिवार्था
  • विल्वर जैलिंस्की
  • एच एच बैरोंज
  • महान की समुद्री शक्ति संकल्पना

                   अर्नाल्ड गुयोट

  • अमेरिका में भूगोल के प्रथम प्रोफ़ेसर

   पुस्तकें

  • The earth and man
  • Physical geography

अमेरिकी भौगोलिक समिति (1850) की स्थापना में गुयोट का प्रमुख स्थान। उल्लेखनीय है कि इस समिति के द्वारा प्रसिद्ध geographical review नामक पत्रिका प्रकाशित की जाती है।

     आर० डी० सैलिसबरी

पुस्तक –physiography

      विलियम मोरिस डेविस

  • अपरदन चक्र सिद्धांत – इसके लिए उन्होंने geomorphic cycle शब्द का उपयोग किया
  • उनके अनुसार कोई भी स्थलाकृति संरचना प्रक्रम तथा अवस्था का प्रतिफल होता है। इसी को डेविस के त्रिकूट के नाम से जाना जाता है।
  • नियत वादी विचारधारा के समर्थक।


डेविस का अपरदन चक्र


डेविस ने स्थल रूपों के विकास से संबंधित कई सामान सिद्धांतों का प्रतिपादन किया। इनका भू-आकृतिक सिद्धांत कई सिद्धांतों का समूह है।
1- सरिता का जीवन चक्र (1899)
2- शुष्क अपरदन चक्र ( 1903, 1905, 1930)
3- भौगोलिक चक्र ( 1899)
4- हिमानी अपरदन चक्र ( 1900,1906)
5- सागरी अपरदन चक्र ( 1912)
नोट – इन्होंने परहिमानी तथा कास्ट क्षेत्रों के निर्मित स्थलाकृतियों से संबंधित किसी स्थलाकृतिक विकास सिद्धांत का प्रतिपादन नहीं किया है।

परिचय

  • वर्हिजनित भू – संचलन से पृथ्वी के सतह पर होने वाले परिवर्तन के संदर्भ में पावेल ने (18। ) आधार तल की संकल्पना का प्रतिपादन किया। उनके अनुसार अपरदन क्रिया अधारतल तक होती है। अर्थात जब स्थलाकृतियां अधारतल ( मुख्यतः समुद्र जल स्तर) को प्राप्त कर लेती है तब अपरदन क्रिया समाप्त हो जाती हैं। पावेल की संकल्पना को स्पष्ट करते हुए डेविस ने स्थलाकृतिक विकास से संबंधित अपने अपरदन चक्र की संकल्पना का प्रतिपादन किया।
  • इनके अनुसार अपरदन चक्र समय की वह अवधि जिसके अंतर्गत उतिथ भूखंड अपरदन की क्रिया द्वारा आधार तल को प्राप्त कर लेता हैं।
  • डेविस के अनुसार स्थलाकृतिया स्थलाकृतिक संरचना प्रक्रम तथा अवस्था के प्रतिफल होते हैं।इसे डेविस के त्रिकूट भी कहा जाता है। डार्विन के विकासवाद की संकल्पना से प्रभावित होकर इन्होंने स्थलाकृतियों के विकास की तुलना जैविक समुदाय/घटक से की। इनके अनुसार स्थलाकृतियों का भी एक अपना जीवन चक्र होता है। तथा इसके विकास यात्रा को भी जैविक घटकों के समान युवावस्था, प्रौढ़ावस्था तथा वृद्धावस्था में वर्गीकृत किया जा सकता है।

मान्यताएं

1- उत्थान अल्पकालिक व तीव्र गति से होता है।

2- युवावस्था में स्थितिज व गतिज ऊर्जा अत्यधिक होता है।

3- उत्थान की प्रक्रिया समाप्त होने के बाद ही अपरदन की प्रक्रिया होती है।

4- नदियां तब तक अपरदन करती हैं जब तक वह प्रमाणित ना हो जाए ( आधार ताल)

5- अल्पकालिक तीव्र उत्थान के बाद स्थलाकृति दीर्घकाल तक स्थिर रहती हैं।

तैयारी की अवस्था – इसे अपरदन चक्र की अवस्था में स्थान नहीं दिया जाता है। इस अवस्था मेंं स्थलाकृतिया अल्पकाल मेंं तीव्र गति से उठ जाती हैं।

मुख्य संरचना

  • डेविस का मॉडल एक समय नियंत्रित मॉडल है उनके अनुसार स्थल रूप संरचना प्रक्रम तथा अवस्था का प्रतिफल होता है।
  • इनके अनुसार अपरदन चक्र, समय की वह अवधि है जिसके अंतर्गत एक उत्थित भूखंड अपरदन के प्रक्रम द्वारा प्रभावित होकर एक आकृति बिहीन समतल मैदान में परिवर्तित हो जाता है।
  • इन्होंने अपनी भौगोलिक चक्र को तीन अवस्थाओं में वर्गीकृत किया है।
  • डेविस के अनुसार उत्थान के प्रक्रिया के समाप्ति के बाद ही अपरदन का कार्य शुरू होता है।
  • डेविस ने इसे तैयारी की अवस्था कहा और अपने मॉडल में इसकी स्थापना नहीं किया।

1- युवावस्था ( youth stage)

  • अपरदन चक्र की युवावस्था में निक्षेप और सापेक्ष उच्चावच अधिक होते हैं।
  • इस अवस्था में कई विशिष्ट स्थलाकृतियों का जन्म होता है। V आकार की घाटी, जलप्रपात व क्षिप्रिका गार्ज और कैनियन
  • सर्वप्रथम दालों के अनुरूप अनुवर्ती नदियों का विकास/छोटी नदियां एवं सहायक नदियों की संख्या भी कम।
  • इस अवस्था में जल विभाजन की चौड़ाई काफी अधिक होती है।
  • शीर्षवर्ती अपरदन द्वारा सरिता अपहरण की घटना इस अवस्था की एक प्रमुख घटना है।
  • घाटी के गहरे होने की अवस्था भी इसे कहते हैं।
  • पादपाकार अपवाह प्रतिरूप का विकास।
  • बोझ कम होने के कारण ( परिवहन क्षमता के अनुरूप) नदी की बहाव गति तीव्र।
  • अपरदन सर्वाधिक किंतु कार्यक्रम
  • ढाल अधिक

2- प्रौढ़ावस्था ( Meture stage)

  • जब क्षैतिज अपरदन की दर ऊर्ध्वाधर अपरदन की दर से अधिक हो जाती है। वैसी स्थिति में स्थलाकृति अपनी विकास की प्रौढ़ावस्था में प्रवेश करती हैं। चुंकि इस अवस्था में पार्श्विक अपरदन के द्वारा घाटी चौड़ी होती है इसलिए इसे घाटी के चौड़ा होने की अवस्था कहते हैं।
  • इस अवस्था में निरपेक्ष उच्चावच तथा सापेक्ष उच्चावच दोनों में तेजी से कमी आती है। पार्श्विक अपरदन के कारण जल विभाजक काफी सकरे हो जाते हैं। जल प्रपात तथा क्षिप्रिकाए ,V आकार की घाटी जैसी स्थलाकृतिया लुप्त हो जाती है।
  • जलोढ़ पंक, जलोढ़ शंकु, तटबंध आदि नई स्थलाकृतिया विकसित होती हैं।
  • सहायक नदियों की संख्या अत्यधिक।
  • जलोढ़ पंक एवं जलोढ़ शंकु के एक दूसरे से विस्तृत होकर मिलने से गिरपदीय जलोढ़ मैदानों का निर्माण।
  • मुख्य नदी के आधार तल को प्राप्त कर क्रमबद्ध हो जाने, साम्यावस्था की परिच्छेदिका का निर्माण
  • इस तरह नदी के अपरदन एवं निक्षेप कार्यों में संतुलन स्थापित होता है।
  • समुद्र भागों में बलखाती हुई प्रवाहित नदियों के द्वारा विसर्पो, गोखुर झील, एवं तटबंध का निर्माण।


वृद्धावस्था ( old stage)

  • जब ऊर्ध्वाधर अपरदन का दर स्थगन हो जाता है तो स्थलाकृति अपने विकास की वृद्धावस्था में पहुंच जाती है।
  • इस अवस्था में क्षैतिज अपरदन के साथ अवसादो के निक्षेपण के कारण निरपेक्ष तथा सापेक्ष उच्चावच में तीव्र गति से कमी आती है।
  • इस अवस्था में पार्श्विक अपरदन तथा घाटी के चौड़ा होने का कार्य जारी रहता है।
  • सहायक नदियों की संख्या प्रौढ़ावस्था से कम किंतु वृद्धावस्था से कम होती है।
  • सहायक नदियां आधार तल को प्राप्त कर लेती हैं।
  • इस अवस्था में निरपेक्ष तथा सापेक्ष उच्चावच दोनों न्यूनतम होते जाते हैं। जब स्थलाकृति अपने आधार तल को प्राप्त कर लेती है तब की स्थिति में आकृति बिहीन समतल मैदान का निर्माण होता है। जिसे डेविस ने पेनीप्लेन कहा। तथा पेनीप्लेन पर कठोर चट्टानों से निर्मित अवशिष्ट स्थलाकृति को मोनाडनाक कहा।
  • इस अवस्था में विसर्प एवं गोखुर झील का विस्तार तथा डेल्टा आदि विशिष्ट आकृतियां विकसित होती हैं।
  • डेविस ने अपने भौगोलिक चक्र का वर्णन करते समय नदी प्रक्रम को महत्व दिया।


आलोचना


1- इनके अनुसार अपरदन चक्र के दौरान स्थलाकृतिया दीर्घकाल तक स्थिर रहती हैं। हम जानते हैं कि प्लेटें गति करती है।
2- इनके अनुसार स्थलाकृतिया तीन अवस्थाओं से गुजरकर साम्यावस्था की परिच्छेदिका की स्थिति प्राप्त करती हैं। जबकि हम जानते हैं कि भूसंचलन के कारण स्थलाकृतिक चक्र में व्यवधान उत्पन्न होता रहता है।
3- इन्होंने अपने मॉडल में समय को अधिक महत्व दिया है तथा स्थलाकृतिक संरचना एवं प्रक्रम को कम महत्व दिया है जबकि हम जानते हैं स्थलाकृतिक विकास में स्थलाकृतिक संरचना एवं प्रक्रम की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
4- इनके अनुसार स्थलाकृतिया उद्विकास सिद्धांत का अनुसरण करती हैं। अर्थात वह क्रमशः प्राथमिक, द्वितीय एवं तृतीय चक्र से होकर विकास प्रवस्थाओं को प्राप्त करती हैं। जबकि हम जानते हैं कि एक ही अपरदन चक्र के अंतर्गत विभिन्न भागों में अपरदन चक्र की तीनों अवस्थाओं की विशेषताओं को देखा जा सकता है।
5- ये जलवायु परिवर्तन को महत्व नहीं देते हैं जबकि जलवायु परिवर्तन पृथ्वी की भूगर्भिक इतिहास का अटल सत्य है। इनके अनुसार उत्थान और अपरदन साथ- साथ चलने वाली प्रक्रिया नहीं है जबकि हम जानते हैं कि दोनों प्रक्रियाएं एक साथ कार्य करते हैं जिसे हम संयुक्त रूप से अनाच्छादन कहते हैं।

प्रासंगिकता

  • प्रलयवाद की संकल्पना ,एकरूपता वाद के सिद्धांत तथा गिल्बर्ट के भू-आकृति नियमों ने भू-विज्ञान के साथ-साथ भू-आकृति विज्ञान के विकास हेतु आधार का कार्य किया।
  • डेविस ने अपने अपरदन चक्र के माध्यम से उपरोक्त नियमों व संकल्पनाओं का उपयोग किया।
  • वर्तमान में स्थल रूप विकास का सिद्धांत के परिपेक्ष में जो भी अध्ययन हो रहा है। उसमें डेविस की अहम भूमिका रही।
  • डेविस के अपरदन चक्र के बिना स्थल रूप विकास सिद्धांत की कल्पना ही नहीं की जा सकती है।

     मार्क जेफरसन

  • प्रधान नगर नियम की संकल्पना का प्रतिपादन
  • प्राकृतिक केंद्रित अध्ययन के स्थान पर मानव केंद्रित अध्ययन को प्रोत्साहन।

एलेन चर्चिल सेम्पुल

     पुस्तकें

  • American history and its geographical condition
  • Influence of geographic environment

सेम्पुल रैटजेल की शिष्या तथा नियतवादी विचारधारा की प्रबल समर्थक थी

बीसवीं सदी के प्रथम दो दशकों में अमेरिकी भूगोलविद् कुमारी एलेन चर्चिल सेम्पुल ( E. C. Semple ) ने नियतिवाद का प्रबल समर्थन तथा खूब प्रचार – प्रसार किया । कुमारी सेम्पुल रैटजेल की शिष्या तथा उनके नियतिवादी विचारों की प्रबल समर्थक थीं । उन्होंने रैटजेल की पुस्तक ‘ एन्थ्रोपोज्योग्राफी ‘ ( मानव भूगोल ) के प्रथम खण्ड ( 1882 ) में प्रतिपादित विचारों को 1911 में प्रकाशित अपनी पुस्तक ‘ Influences of Geographic Environment ‘ ( भौगोलिक पर्यावरण के प्रभाव ) में अंग्रेजी भाषा में बड़े सरल , रोचक और स्पष्ट ढंग से और प्रभावशाली शैली में प्रस्तुत किया । आंग्ल भाषी देशों में यह पुस्तक बहुत लोकप्रिय हुई । इस प्रकार आंग्लभाषी विश्व में रैटजेल के नियतिवादी विचारों को प्रचारित करने का श्रेय कु ० सेम्पुल को ही जाता है । सेम्पुल कठोर नियतिवाद की अनुयायी थीं और उन्होंने अपने प्रभावशाली लेखन द्वारा इस विचारधारा को उच्चतम स्तर तक पहुँचा दिया । उनकी सम्पूर्ण पुस्तक नियतिवादी विचारों से ओतप्रोत है जिसमें रोचक उदाहरणों द्वारा मनुष्य पर प्रकृति के प्रभावों को समझाने का प्रयास किया गया है । सेम्पुल ने पुस्तक के आरम्भ में ही लिखा है।

( मानव भूतल की उपज है । इसका अर्थ केवल इतना ही नहीं है कि वह पृथ्वी का बच्चा है । उसकी मिट्टी की धूल है । बल्कि यह भी है कि पृथ्वी माता ने उसे जन्म दिया है । उसका पालन – पोषण किया है । उसके कार्यों को निर्धारित किया है , उसके विचारों को दिशा प्रदान की है , उसके सम्मुख कठिनाइयाँ उपस्थिति की है जिन्होंने उसके शरीर को शक्ति और उसकी बुद्धि को तीव्रता प्रदान की है , उसको सिंचाई और नौकायन की समस्याएं प्रदान किया है और उसके साथ ही उनके समाधान के लिए संकेत भी बता दिया है । वह उसकी हड्डी और ऊतक में , उसके मस्तिष्क और आत्मा में प्रविष्ट हो गयी है । )

  एल्सवर्थ हटिंगटन

पुस्तकें

  • The power of Asia
  • Civilization and climate
  • Principle of human geography
  • Principle of economic geography
  • Earth and sun
  • Character and race
  • Main spring of civilization
  • Economic and social geography
  • Human habitat
  • Climate change its nature and factors
  • नियतवादी विचारधारा के समर्थक । उनके अनुसार मानव का भौगोलिक वितरण किसी अन्य तत्व की तुलना में जलवायु और मौसम पर अधिक निर्भर करता है।
  • मानव भूगोल के तत्व उन्हें मानव भूगोल के तत्व को मानव प्रति क्रियाओं के रूप में परिभाषित किया। उन्होंने समस्त मानव प्रतिक्रियाओं को निम्नलिखित चार वर्गों तथा 22 उप वर्गों में विभक्त किया।

मानव भूगोल के तथ्य

1- भौतिक दशाएं

2- जीवन के प्रकार

3- मानव प्रतिक्रियाएं

 

        ईशा वोमेन

  प्रमुख शोध ग्रंथ

  • The pioneer fringe
  • International relation
  • New world, problem in political geography
  • Geography is relation to the social science
  • संभववाद के समर्थक

      ग्रिफिथ टेलर

पुस्तके

  • Racial geography
  • Environment, race and migration
  • Essay on population Geography
  • Cultural geography
  • Geographical in twentieth century
  • Our Evolving civilization
  • Journeyman Taylor

 अन्य योगदान

  • प्रवास कटिबंध सिद्धांत अथवा कटिबंध एवं स्तर सिद्धांत
  • नव निश्चयवाद विचारधारा के प्रवर्तक जिसे रुको और जाओ निश्चयवाद अथवा वैज्ञानिक नियतिवाद के नाम से भी जाना जाता है।
  • नगरीय विकास की अवस्थाएं (1953)

1- पूर्व शैशवावस्था

2- बाल्यावस्था

3- किशोरावस्था

4- प्रौढ़ावस्था

5- उच्च प्रौढ़ावस्था

6- वृद्धावस्था

मानव प्रजातियों का वर्गीकरण

1- नीग्रिटो

2- नीग्रो

3- ऑस्ट्रेलाइड

4- भूमध्यसागरीय

5- नार्डिक

6- अल्पाइन 

7- मांगोलिक

ग्रिफिथ टेलर का प्रवास कटिबंध सिद्धांत

मानव प्रजातियों के आविर्भाव पर प्रकाश डालिए मानव प्रजातियों का उत्पत्ति एवं विकास एक जटिल प्रक्रिया है। मानव प्रजाति के आविर्भाव के विषय में मानव ज्ञान अभी अधूरा है और विभिन्न मानव शास्त्री इस मुद्दे पर एकमत नहीं है।
संसार के विभिन्न भागों में पाई जाने वाली मानव प्रजातियों के वाह्य लक्षणों में पर्याप्त अंतर पाया जाता है। प्रजातियां तत्व पूर्ण स्थैतिक नहीं है, बल्कि इनमें देशकाल एवं मानवीय कारकों के अनुसार कुछ पीढ़ियों पश्चात परिवर्तन देखने को मिलता है।
प्रजातियों का मिश्रण, प्राकृतिक चयन, ग्रंथि रस प्रभाव एवं भौगोलिक तथा समाजिक पर्यावरण कुछ ऐसे विशिष्ट तत्व है जो प्रजाति गुणों को आवश्यक रूप से प्रभावित करते हैं।
मानव प्रजातियों के आविर्भाव को स्पष्ट करने के संदर्भ में ग्रिफिथ टेलर का योगदान सराहनीय है। उन्होंने प्रवास कटिबंध सिद्धांत (1913) या कटिबंध व स्तर सिद्धांत ( Zone and strata theory ) के माध्यम से प्रजातियों की उत्पत्ति , विकास एवं वितरण की व्याख्या समय एवं क्षेत्र के संदर्भ में की।
डार्विन के विकास वाद से प्रभावित होकर टेलर की संकल्पना अनेक जैविक एव भौगोलिक तथ्यों पर आधारित है।
मानव प्रजातियों का उत्पत्ति स्थल मध्यएशिया का स्टेपी क्षेत्र था। आखेट मानव जीवन का आधार था। जलवायु परिवर्तन के फलस्वरुप कई अंतर्हिम युग आते गए। इन्हीं अंतर्हिम युगों में मानव प्रजातियों का उद्भभव हुआ।

सबसे पहले नीग्रो प्रजाति का विकास मध्य एशिया में हुआ। उस समय वहां की जलवायु उष्ण थी।

कालांतर में हिम युग का आविर्भाव हुआ। फल स्वरूप मध्य एशियाई क्षेत्र के अति शीतल हो जाने के कारण मानव प्रजातियां अपेक्षा गर्म दक्षिणी क्षेत्र की ओर अग्रसरित हुई।


विकास क्रम – नियण्डर थल मानव > नीग्रिटो >नीग्रो>ऑस्ट्रेलिईड>भूमध्यसागरीय > नॉर्डिक >अल्पाइन > मंगोलिक।
हिम युग के समाप्ति पर मध्य एशिया के पुनः निवास योग्य हो जाने पर प्रवासी प्रजातियां लौट आईं किंतु कुछ लोगों ने वही रहना पसंद किया। इस तरह दो प्रजातियों का उद्भभव हुआ।
‌ पुनः हिमयुग के आगमन पर एशियाई प्रजातियां पुनः प्रवासित हुई। क्योंकि बाद में विकसित प्रजातियां पहले की प्रजातियों की अपेक्षा अधिक चतुर एवं शक्तिशाली थी।इसलिए उन्होंने पहले की प्रवासित प्रजातियों को बाहर की तरफ ढकेल दिया।
इस तरह बार-बार हिम युग के आगमन के फलस्वरुप बाद में विकसित प्रजातियां अपने पूर्वज प्रजातियों को हटाती रही । फलत: जो प्रजाति सबसे पहले विकसित हुई वह परिधि पर जाने को मजबूर हुई। बाद में विकसित मंगोलॉयड प्रजाति अभी भी मध्य एशिया के केंद्र में हैं।
प्रवासी प्रजातियों को अपने वातावरण से समायोजन करना पड़ा । फलस्वरुप उसके रंग, रूप, कद आदि में परिवर्तन हो गयाा। इस प्रकार नए जलवायु कटिबंधों के प्रभाव से भिन्न भिन्न शारीरिक लक्षणों वाली मानव प्रजातियों का उद्भव हुआ एवं विकास संभव हुआ।
टेलर ने इस सिद्धांत के प्रतिपादन के संदर्भ में विभिन्न
साक्ष्यों को प्रस्तुत किया जो अग्रलिखित हैं।
A- एशिया महाद्वीप की केंद्रीय स्थिति जिसके बहिवर्ती क्षेत्र में ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, यूरोप महाद्वीप की स्थिति है।
B- प्रत्येक महाद्वीप में प्रजातीय कटिबंध पाए जाते हैं जो मध्य एशिया से बाहर की ओर आदिकालीन होते गए हैं।
C- आदिकालीन प्रजातियों की स्थिति परिधि पर तथा नव विकसित प्रजातियां केंद्र में है।
D – आदि प्रजातियों का निवास स्थान परिवर्तित है।
5- सर्वाधिक विकासीत क्षेत्रों में आदिम प्रजातियां दबी हुई है।
6- यूरोप, अफ्रीका, दक्षिण एशिया तथा ऑस्ट्रेलिया में पाए गए साक्ष्य से पुष्टि होती है कि मध्य एशिया से अपकेंद्रीय प्रवास हुआ।

निष्कर्षत: प्रजातियों का विकास एक लंबे उद्विकास का परिणाम है जिसमें पहले पर्यावरणीय तत्वों का प्रमुख भूमिका थी बाद में मानवीय तत्व भी एक प्रमुख कारक के रूप में उभरे।

ग्रिफिथ टेलर के द्वारा प्रतिपादित प्रवास कटिबंध सिद्धांत के अनुसार प्लेस्टोसीन हिम युग के समय प्रतिकूल जलवायु दशाओं के होने के कारण मध्य एशिया से प्रजातियों का विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में प्रवास हुआ। इसके अनुसार मध्य एशिया की प्रजातियों के उद्भव का क्षेत्र था।

नव नियतिवाद

नव नियतिवाद मानव प्रकृति के संबंधों पर आधारित ऐसी विचारधारा है जो नियतवाद एवं संभववाद जैसी अतिशयी विचारधाराओं के विपरीत मध्यम मार्ग का अनुसरण करती है। जहां नियतिवादी मनुष्य को दास के रूप में तथा संभव आदि मनुष्य को विजेता के रूप में प्रदर्शित करते हैं वही नव नियतिवादी मानव एवं प्रकृति के बीच ऐसे संबंधों की कल्पना करते हैं जो सामंजस्यता पर आधारित हो अर्थात नियतिवादियों की तरह अनुकूल एवं नियंत्रण शब्द नहीं बल्कि समायोजन शब्द को महत्व प्रदान करते हैं। ग्रिफिथ टेलर को नव-नियतिवाद का प्रमुख प्रवर्तक माना जाता है।

वे नियंत्रण के स्थान पर प्रकृति के प्रभाव की चर्चा करते हैं उनका मानना था कि मानव पर पर्यावरण प्रभाव की पूर्णत: उपेक्षा नहीं की जा सकती है भले ही उसकी तीव्रता में कमी की जा सकती है आज भी सहारा एवं पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के मरुस्थलो तथा अंटार्कटिका जैसे हिमाच्छादित क्षेत्रों में प्रकृति की दासता को स्वीकार करना पड़ता है उनका मानना था कि प्रकृति एक ट्रैफिक पुलिस के समान है जो यात्रियों को चौराहे पर नियंत्रित तो करती है लेकिन उनके गंतव्य को नहीं बदलती है यात्रियों को जिस प्रकार से यातायात के नियमों का पालन करना चाहिए उसी तरह मनुष्य को भी प्रकृति के नियमों का पालन करना चाहिए अन्यथा उसे किसी अज्ञात कठिनाइ या दुर्घटना का शिकार होना पड़ सकता है ।

टेलर की रुको एवं जाओ की विचारधारा इसी तरह संकेत करती है चार्ल्स, टैथम , सावर, हरबर्टसन आदि ने भी प्रकृति के समायोजन पर बल दिया है वर्तमान संदर्भ में यह विचारधारा व्यावहारिक एवं प्रासंगिक तो है ही विश्व के लिए वाध्यकारी भी होनी चाहिए मनुष्य ने अपनी उपभोगवादी प्रवृत्ति के कारण प्रकृति के साथ जो खिलवाड़ किया है प्रकृति ने अपना रौद्र रूप धारण कर लिया है यदि हमने अपना स्वभाव नहीं बदला तो वह अनेक प्रकार की आपदाओं एवं विपदाओं के रूप में हमें नष्ट कर देगी। वर्तमान के समय में अनेक आपदाओं के रूप में उसने अपना रौद्र रूप दिखा भी दिया है, अब मनुष्य के हित में है कि वह प्रकृति के इस खतरनाक संकेत को समझे। वैज्ञानिक नियतवाद या रुको और जाओ नियतवाद नव- निश्चयवाद या नव- निश्चयवाद या नव- पर्यावरणवाद ।

जार्ज टैंथम केे अनुसार – नियंत्रण के स्थान पर प्रभाव एवं प्रभाव के स्थान पर समायोजन पर बल दिया जाना चाहिए। जिसे जॉर्ज टैंथम व्यावहारिक संभववाद कहा।

कार्ल आस्कर सावर

  पुस्तकें

  • Morphology of landscape
  • Culture geography
  • Introduction of historical geography
  • Agriculture origin and dispersal
  • Introduction to geography
  • Human use of organic world
  • क्षेत्रीय भिन्नता शब्द का सर्वप्रथम उपयोग कार्ल सावर ने ही किया था। यह जर्मन भूगोलवेत्ता हेटनर की क्षेत्रीय भिन्नता संकल्पना से अत्यधिक प्रभावित थे। उनके अनुसार भूगोल का उत्तरदायित्व क्षेत्रीय अध्ययन है।विद्यालय का प्रत्येक बच्चा जानता है कि भूगोल विभिन्न देशों के विषय में सूचना देता है। किसी भी अन्य विषय में क्षेत्रीय अध्ययन का दावा नहीं किया है
  • भू दृश्य की संकल्पना (1925) की विस्तृत विवेचना।
  • सांस्कृतिक स्थल शब्दावली का सर्वप्रथम उपयोग।
  • संभववाद के समर्थक

 मुख्य संकल्पना

   कार्ल सावर हैटनर की भू-विस्तारिय संकल्पना से अत्यधिक प्रभावित थे। उनके अनुसार भूगोल का उत्तरदायित्व क्षेत्र अध्ययन है। विद्यालय का प्रत्येक बच्चा जानता है कि भूगोल विभिन्न देशों के संबंध में सूचना देता है। इसके अन्य विषय में क्षेत्रीय अध्ययन का दावा नहीं किया है।

भू-दृश्य की संकल्पना (1925) – इन्होंने अपनी पुस्तक ‘भू- दृश्य की आकृति’ में जर्मन शब्द लैंडसॉफ्ट को लैंडस्केप नाम से पहली बार संबोधित किया। इनके अनुसार भू-दृश्य को सामान्यता दो वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है । प्राकृतिक, सांस्कृतिक।

संभववाद की संकल्पना – कार्ल सावर अमेरिका के प्रमुख भूगोलवेत्ता थे। हालांकि वे ग्रिफिथ ट्रेलर के नव नियतवाद संकल्पना को महत्वपूर्ण मानते थे। उनका मानना था कि किसी प्रदेश की भू-दृश्य  विशेषकर सांस्कृतिक भू-दृश्य के निर्माण में मानव की सशक्त भूमिका होती है।

सांस्कृतिक उद्गम स्थल – इस शब्द का सर्वप्रथम उपयोग कार्ल सावर ने किया था। कार्ल सावर के अनुसार कृषि पद्धतियों के उद्गम स्थल वाले क्षेत्रों में ही विशिष्ट मानव संस्कृति की उत्पत्ति हुई थी। जिसे वर्तमान में सांस्कृतिक उद्गगम स्थल ( cultural heart) के नाम से जाना जाता है।

मेसोपोटामिया, सिंधु, मिस्र आदि की सभ्यताएं सांस्कृतिक उद्गम स्थल के रूप में उत्पन्न एवं विकसित हुई तथा जहां से बाद के वर्षों में विभिन्न क्षेत्रों में मानव संस्कृतियों का विसरण अन्य क्षेत्रों में हुआ।

रिचर्ड हार्टशोर्न

  पुस्तकें – 

  • The nature of geography
  • The perspective nature of geography

  इनकी विचारधारा

  • भूतल की संकल्पना
  • क्षेत्रीय विभेदीकरण की संकल्पना इनके अनुसार भूगोल मानव गृह के रूप में पृथ्वी के एक स्थान से दूसरे स्थान पर पाई जाने वाली भिन्नता का वर्णन एवं व्याख्या करता है।
  • भू दृश्य की संकल्पना का विस्तृत विवेचन।
  • संभववाद के समर्थक
  • भूगोल में द्वैतवाद को

( 1 ) भूतल की संकल्पना ( Concept of Earth’s Surface ) – हार्टशोर्न ने भूतल के सम्बंध में व्याप्त भ्रांतियों को दूर करने का सार्थक प्रयास किया था । उन्होंने प्राचीनकाल से लेकर वर्तमान काल तक के विद्वानों के विचारों की समीक्षा की और भूतल के विषय में अपना स्पष्ट मत व्यक्त किया । भूगोल एक क्षेत्रीय या स्थानिक विज्ञान ( spatial science ) है जिसमें भूतल ( Earth’s surface ) का अध्ययन मानव गृह के रूप में किया जाता है । स्थानिक विज्ञान के तीन रूप हैं – खगोलशास्त्र ( Astronomy ) , भूगर्भशास्त्र ( Geology ) और भूगोल ( Geography ) । खगोल शास्त्र में आकाशीय पिण्डों का और भूगर्भशास्त्र में पृथ्वी की आंतरिक संरचना का अध्ययन किया जाता है । भूगोल पृथ्वी की ऊपरी खोल अर्थात् भूतल के अध्ययन से सम्बंधित है । हार्टशोर्न ने स्पष्ट किया कि भूतल के अन्तर्गत तीन भूक्षेत्र सम्मिलित होते हैं ।

( 1 ) स्थलमण्डल ( Lithosphere ) — पृथ्वी की ऊपरी सतह और उसके नीचे की पतली शैल परत जो भूतल को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती है ।

( 2 ) जलमण्डल ( Hydrosphere ) — पृथ्वी पर स्थित जलराशियाँ जैसे सागर एवं महासागर ।

( 3 ) वायुमण्डल ( Atmosphere ) — वायु मण्डल की निचली परत ( क्षोभमण्डल ) जिसमें ऋत्विक और जलवायविक भिन्नताएं पायी जाती हैं और जो पृथ्वी की ऊपरी सतह के जैविक और अजैविक तत्वों को प्रभावित करती है ।

          एच एच वेरोज

  • मानव परिस्थिति की संकल्पना का प्रतिपादन।

   डी हवीटलिसी

  • अनुक्रम आधिभोग ( sequent occupance ) की संकल्पना का प्रतिपादन।
  • उनके अनुसार किसी क्षेत्र का अध्ययन मानव बसाव के अनुक्रम ओं में किया जाना चाहिए।
  • पर्यावरण नियतिवाद विचारधारा का विरोध।

जी.टी. ट्रिवार्था

  • जलवायु वर्गीकरण
  • A geography of population world pattern इनकी एक प्रसिद्ध पुस्तक।

      विल्वर जैलिन्सिकी

  • A a prologue to population Geography इनकी प्रमुख पुस्तक।
  • प्रवास के संबंध में उन्होंने गतिशीलता संक्रमण सिद्धांत का प्रतिपादन किया।
  • वर्गेस का संकेंद्रीय वलय सिद्धांत।
  • हरीश एवं उलमैन का बहु नाभिक सिद्धांत।
  • होमर होयट का त्रिज्य खंड सिद्धांत
  • हारवूड एवं बायसे ने CBD के संदर्भ में केंद्र ढांचा संकल्पना ( core frame concept) का प्रतिपादन किया।
  • वेहरवीन ने rural urban fringe का विस्तृत अध्ययन किया।
  • सीडी हरीश एवं विक्टर जोंस ने अमेरिकी उप नगरों का विस्तृत अध्ययन किया।
  • जिफ का कोटि आकार नियम नगरीय भूगोल की प्रमुख संकल्पना ।

महान की समुद्री शक्ति संकल्पना

महान की समुद्री शक्ति संकल्पना-

ए०टी० महान 19वीं सदी के एक महान इतिहासकार थे जिन्हें जान कीगन द्वारा 19वीं सदी के सबसे महत्वपूर्ण अमेरिकी रणनीति कार की उपाधि दी गई।
इन की पुस्तक का नाम-
1-the infuence of sea power on history,1660-1783(1890)
2-the infuence of the the sea power up to the French revolution and Empire,1793-1812(1892)
दूसरी पुस्तक लिखने के बाद इन्हें वैश्विक स्तर पर काफी ख्याति मिली।
इनके विचारों को डच गणराज्य, इंग्लैंड, फ्रांस और स्पेन के बीच 17 वी सदी के संघर्षों एवं फ्रांस ग्रेट ब्रिटेन के बीच 19वीं सदी के नौसैनिक युद्धों द्वारा आकार दिया गया था।
ब्रिटिश नौसेना की श्रेष्ठता ने अंततः फ्रांस को हराया लगातार आक्रमण एवं प्रभावी नाकेबंदी को रोका। उन्होंने जोर देकर कहा कि नौसेना संचालन नाकेबंदी बंदी और निर्णायक लड़ाई दोनों में मुख्य भूमिका में हो सकता है।
इनके अनुसार ब्रिटेन की महाशक्ति बनने की फीस है सबसे बड़ा कारण उसकी समुद्र शक्ति थी। इन्होंने कूटनीति एवं भूमि आधारित हथियारों की उपेक्षा की।
इनके अनुसार किसी राष्ट्र की महानता उसके समुद्र के नियंत्रक से आती है। समुद्र पर शांत के समय व्यापार द्वारा तथा युद्ध के समय नियंत्रण के द्वारा कोई देश शक्तिशाली बन पाता है। इनका सिद्धांत भूमि आधारित साम्राज्यो यथा बिस्मार्क का जर्मनी साम्राज्य अथवा रूसी साम्राज्य के उदय की व्याख्या नहीं करता है।

समुद्री शक्ति के तत्व-

इनके अनुसार समुद्री शक्ति का विकास करके विश्व व्यापार को नियंत्रित किया जा सकता है तथा व्यापार को नियंत्रित करके विश्व पर प्रभुत्व स्थापित किया जा सकता है।
युद्ध के समय आक्रमण रक्षा की सर्वोत्तम पद्धति है। के सिद्धांत को 9 सैनिक शक्ति के माध्यम से अक्षरस: लागू किया जा सकता है।
समुद्री शक्ति के माध्यम से नाकाबंदी के द्वारा भयादोहन करके भी राष्ट्रीय हितों की पूर्ति की जा सकती है समुद्री शक्ति के उपरोक्त रणनीतिक महत्व को देखते हुए शक्ति के तत्व को समझना जरूरी है जो कि अग्रलिखित है-
अवस्थिति– द्विपीय, प्रायद्वीपीय, तटीय
सरकार– रुचि
बनावट-तटगहरा, कटा फटा
जनसंख्या-समुद्री शक्ति में अपना भविष्य तलासते हो।
विस्तार– क्षेत्र के अनुरूप लंबी तटीय सीमा (अमेरिका), क्षेत्र की तुलना में लंबी तटीय रेखा, रक्षा व्यय बढ़ जाएगा
राष्ट्रीय चरित्र– साहसीक यात्राओं में विश्वास तथा साम्राज्यवादी प्रवृत्ति
किसी देश के द्विपीय, प्रायद्वीपीय अथवा तटीय स्थिति समुद्री शक्ति का एक नौसर्गिक तत्व के सहारे सहज रूप से विश्व की प्रमुख नौसैनिक शक्तियां हैं।
बनावट कटे-फटे एवं गहरे तट बंदरगाहों के विकास के लिए अत्यंत अनुकूल होते हैं तथा तटीय विस्तार यदि किसी देश के क्षेत्रफल एवं संसाधनों के अनुरूप है दो नौसेना का विकास सहज रूप में संभव है जैसे अमेरिका।
चिली के पास लंबी तट रेखा के साथ संसाधनों की कम उपलब्धता एवं क्षेत्रीय विस्तार की सिमितता के कारण जहां समुद्री शक्ति का प्रभाव प्रतिकूल रूप से प्रभावित हुआ वही उसका रक्षा व्यय भी बढ़ गया। जिस देश की जनसंख्या समुद्र को प्रमुख व्यवसाय के रूप में स्वीकार करती है। उस देश में समुद्री शक्ति का विस्तार सहज संभव है जैसे अमेरिका और ब्रिटेन।
फ्रांस और जर्मनी के पास उपजाऊ जमीन अधिक होने के कारण वही समुद्री शक्ति का यथोचित विकास नहीं हो पाया।
राष्ट्रीय चरित्र भी इस संदर्भ में काफी मायने रखता है।
समुद्री उद्यमिता, निर्डरता, सामुद्रिक शाहसिक यात्राएं तथा दूसरे पर प्रभुत्व स्थापित करने की भावना यदि किसी देश के राष्ट्रीय चरित्र में है तथा सरकार भी उसमें रुचि रखती है और संसाधनों एवं नीतियों के माध्यम से नौसेना तथा समुद्री व्यापार को प्रोत्साहित करती है तो यह स्वभाविक है कि वह देश विश्व की प्रमुख सामुद्रिक शक्तियों में शुमार होगा।

नौसैनिक स्ट्रेटजी का सिद्धांत-
महान के अनुसार प्रौद्योगिकी विकास के साथ-साथ सांम्रिकी तो बदल जाती है लेकिन स्ट्रेटजी के सिद्धांतों अपरिवर्तित रहते हैं।
इनके अनुसार नौसैनिक स्ट्रेटजी का सिद्धांत अग्रलिखित है-
1-अवस्थिति
2-नौसैनिक शक्ति

3-संकेंद्रण

4-संचार रेखाएं5-संसाधन

अवस्थिति
केंद्रीय अथवा संकेंद्रण भाग पर स्थित नौसैनिक कमान नौ सेना के लिए एक वरदान की तरह है।
जैसे हिंद महासागर में स्थित डियोगोगार्सिया, अमेरिका नौसेना को indo-pacific क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठता प्रदान करता है। क्योंकि अमेरिका यहां से एशिया, ऑस्ट्रेलिया और अफ्रीका से संलग्न देशों के व्यापार को नियंत्रित करता ही है और उस क्षेत्र के साथ रणनीतिक साम्रिकी बढ़त भी बनाए रखने में कामयाब होंगे।

नौसैनिक शक्ति-
आक्रमणात्मक तथा सुरक्षात्मक दोनों से लैस नौ सैनिक क्षमता वाले देश निश्चित और निडर होकर दुश्मन देश पर सम केंद्रित आक्रमण कर सकते हैं।
महान का यह मानना था कि नौसैनिक पोतों के साथ बड़े छोटे और भी पोत होने चाहिए। उनके अनुसार बीच-बीच में समर्थ देश को अपनी नौसैनिक क्षमता का और प्रदर्शन भी करना चाहिए।

संसाधन
प्राकृतिक संसाधन जैसे गहरे बंदरगाह शक्तिशाली पड़ोसी मित्र भी नौसेना शक्ति के विकास में प्रमुख भूमिका अदा करते हैं। इसी तरह जल उद्योग, निर्माण उद्योग, मत्स्य उद्योग आदि के लिए भी आधारभूत ढांचे का विकास करके समुद्री अर्थव्यवस्था पर प्रभुत्व स्थापित करना चाहिए।

संचार रेखाएं-
संचार रेखाएं आपूर्ति के वह मार्ग हैं, जो अन्य अड्डों को मुख्य नौसैनिक कमांड से जोड़ते हैं।
यदि हम अपनी संचार रेखाओं को सुरक्षित बनाए रखते हुए दुश्मन देश की संचार रेखा को नष्ट कर दे तो हम दुश्मन देश की अपेक्षा अधिक लाभ की स्थिति में होंगे।

संकेंद्रण
दुश्मन देश के सापेक्ष अपनी नौसेना का संकेन्द्रण करते रहना चाहिए।
यदि कभी दो मोर्चों पर लड़ाई लड़ना पड़े तो पहले मोर्चे को जीत लिया जाए उसके बाद दूसरे मोर्चे पर लड़ा जाए।
आंग्लडच युद्ध में अंग्रेजो द्वारा हारने का सबसे बड़ा कारण दोनों मोर्चों पर एक साथ लड़ा जाने वाला युद्ध था।
क्योंकि उसे एक तरफ फ्रांस जलाना था तथा दूसरी तरफ डचों से, इससे काफी उनकी नौ सैनिक शक्ति बिखर गई और वह संगठित और संकेंद्रित आक्रमण न कर सकें।
महान का यह भी मानना था कि यदि किसी कारण बस दो मोर्चों पर लड़ाई लड़नी पड़े तो कमांड की एकता हर हाल में बनाए रखनी चाहिए।

आलोचना
1-लड़ाकू हवाई विमानो तथा समुंद्री बारूदी सुरंगों के द्वारा समुद्री बेड़े को नष्ट भी किया जा सकता है जैसे द्वितीय विश्वयुद्ध में जर्मनी ने बाल्टिक सागर में ब्रिटेन की 9 सैनिक शक्ति को नष्ट किया था जापान ने अमेरिका पर्ल हार्बर नौसैनिक अड्डों को लड़ाकू विमान द्वारा आक्रमण करके डुबो दिया गया था।
2- भारत जैसे देश को “TWO FRONT WAR”जैसी स्थिति से गुजरना पड़ रहा है ऐसी स्थिति में महान की एक मूर्ति पर फतह कर दूसरे मोर्चे पर लड़ने वाली बात उतनी प्रासंगिक दिखाई नहीं पड़ रही है।
3- वर्तमान में युद्ध का स्वरूप काफी बदल गया है साइबर युद्ध, अंतरिक्ष युद्ध, युद्ध के नए आयाम के रूप में उभरे हैं वायु सेना ने युद्ध के स्वरूप को पूर्णतया परिवर्तित कर दिया है।
4-युद्ध के इस नए आयामों के संदर्भ महान मौन महान अपनी इस संकल्पना की माध्यम से साम्राज्यवाद एवं उपनिवेशवाद को प्रोत्साहित करते हैं जो कि युद्ध के मूल्यों के खिलाफ है।

प्रासंगिकता
उपरोक्त आलोचनाओं के बावजूद महान की समुद्री शक्ति संकल्पना न केवल और भूत और वर्तमान में प्रासंगिक है बल्कि भविष्य में इसकी प्रासंगिकता बनी रहेगी ब्रिटेन और ऊपर राज्य करता है तथा हिंद महासागर को ब्रिटेन का झील कहा गया उक्त दोनों को समुद्री शक्ति अमेरिका जैसी महाशक्ति के द्वारा विश्व स्तर पर विश्व के प्रमुख सागरीय क्षेत्रों के नौसैन कमांडो की स्थापना महान की समुद्री शक्ति की संकल्पना की प्रासंगिकता को बताता है।
महान के द्वारा की गई यह भविष्यवाणी 21वीं सदी के भविष्य का फैसला हिंद महासागर की लहरों पर होगा जो अत्यंत प्रासंगिक है।
आज विश्व की विभिन्न महा शक्तियां हिंद महासागर पर अपना प्रभुत्व स्थापित करने का प्रयास करती हैं अमेरिका द्वारा डिएगो गार्सिया द्वीप पर नौसैन बेस की स्थापना चीनी द्वारा पूर्वी अफ्रीका के तटवर्ती क्षेत्रों में सैनिक बेश बनाया जाना तथा भारत द्वारा अंडमान निकोबार द्वीप समूह पर नौसैन कमांड की स्थापना के साथ साथ में जिबूती, ओमान में सैन्य बेसो की स्थापना हिंद महासागर के भू राजनीतिक महत्व को बताता है।

निष्कर्ष
निष्कर्षत: महान की समुद्री शक्ति संकल्पना साम्राज्यवादी तथा उपनिवेशवादी दृष्टिकोण के साथ सैन्य उद्देश्यों से प्रेरित थे। इसका मुख्य उद्देश्य समुद्री शक्ति के तत्वो और सिद्धांतों का उपयोग करते हुए किसी देश विशेष को समुद्री शक्ति बनने हेतु प्रेरित करना था।
आज भी इनके मार्गदर्शक सिद्धांत विश्व की महा शक्तियों की समुद्रनीति एवं रक्षा नीति का आधार बने हुए हैं।

भूगोल में जर्मन का योगदान

 जर्मनी भूगोल के अध्ययन की दृष्टि से अंग्रेजी देशों में था।हंबोल्ट रीटर तथा रैैटजेेल जैसे भूगोलवेत्ता जिन्होंने अपने अध्ययन के माध्यम से भूगोल को धनी बनाया जर्मनी के ही थे।जर्मनी के भूगोल नेताओं के योगदान को भूगोल में शामिल किए बिना भूगोल विषय अधूरा हो जाएगा।

    प्रमुख भूगोल नेताओं जिनका भूगोल विषय में योगदान अनुकरणीय है वह अग्रलिखित हैं।

  • ऑस्कर पेशेल
  • रिचथोफेन
  • फ्रेंडरिक रेटजेल
  • अलफ्रेड हैटनर
  • अल्फ्रेड फेंक
  • वाल्टर पेंक
  • क्रिस्टालर
  • बेवर
  • कार्ल

                 ऑस्कर पेशेल

  • ‘दास आइसलैंड’ पत्रिका के संपादक

    पुस्तकें – 

  • age of Discovery
  • History of geography
  • Physical trade
  • Bolkar kunde

    फर्डीनण्ड वान रिच थोफन

  • चीन का भूगोल इनकी प्रमुख पुस्तक है।
  • उनके अनुसार भूगोल में भूतल के क्षेत्रीय भिन्नता ओं का अध्ययन होता है।

फ्रेडरिक रेटजेल

  • मानव भूगोल का पिता

प्रमुख पुस्तकें

  • एंथ्रोपॉजियोग्राफी-I. – नियत वादी विचारधारा का स्पष्ट प्रभाव।
  • एंथ्रोपॉजियोग्राफी – II  – संभववाद के तरफ रुझान।
  • राजनीतिक भूगोल
  • मानव जीवन का इतिहास ( बोल्कर कुंडे)

   अन्य तथ्य

  • भू राजनीति में लेवनास्रम ( रहने का स्थान) शब्द का उपयोग)
  • नियत वादी विचारधारा के समर्थक पार्थिव एकता के सिद्धांत का समर्थक।
  • राज्य का जैविक सिद्धांत का प्रतिपादन।
  • सांस्कृतिक भू दृश्य की संकल्पना को वैचारिक आधार प्रदान किया।

    अल्फ्रेड हेटनर

  • जियोग्राफी जाइशिफ्ट नामक प्रसिद्ध पत्रिका का संपादन
  • Geography of man नामक पुस्तक लिखी।

हेटनर की रचनायें 

 ( 1 ) कोलम्बिया के एण्डीज क्षेत्र की यात्रा ( 1888 ) 

 ( 2 ) रूस का भूगोल ( 1905 ) 

 ( 3 ) यूरोप का प्रादेशिक भूगोल ( 1907 )

 ( 4 ) इंग्लैण्ड का विश्वव्यापी प्रभुत्व और युद्ध ( 1915 ) 

 ( 5 ) पृथ्वी के महाद्वीपों की स्थलाकृतियाँ ( 1921 , 1928 )

 ( 6 ) प्रादेशिक भूगोल के आधार ( 1924 ) 

 ( 7 ) पृथ्वी पर संस्कृति का प्रसार ( 1928-29 )

 ( 8 ) ‘ तुलनात्मक प्रादेशिक भूगोल ‘ ग्रंथमाला के चार खण्ड ( 1933-35 )

 ( 9 ) मानव भूगोल ( मृत्यु के पश्चात् तीन खण्डों में प्रकाशित )

 हेटनर की विचारधारा

( 1 ) क्षेत्रीय भिन्नता की संकल्पना ( Concept of Areal Differentiation ) हार्टशोर्न के अनुसार क्षेत्रीय भिन्नता की संकल्पना को हम्बोल्ट और रिटर के विचारों का संश्लेषण करके रिचथोफेन ने पुनर्जीवित किया था और इसकी विशद विवेचना हेटनर की रचनाओं में किया गया है । हेटनर ने 1898 में लिखा था कि ‘ प्राचीनतम काल से आधुनिक काल तक भूगोल भू – क्षेत्रों के ज्ञान का विषय रहा है जो एक – दूसरे से भिन्न हैं । ‘ उन्होंने 1905 में भूगोल को भू – विस्तारीय विज्ञान ( chorological science ) बताया जिसमें पृथ्वी के क्षेत्रों तथा स्थानों का अध्ययन उनकी भिन्नताओं तथा भूसंबंधों के संदर्भ में किया जाता है । दूसरे शब्दों में भूगोल भूतल का विज्ञान है जो उसकी प्रादेशिक भिन्नताओं का अध्ययन महाद्वीपों , देशों , जनपदों तथा स्थानों के संदर्भ में करता है । इस प्रकार भूगोल यह जानने का प्रयल करता है कि पृथ्वी की भिन्न – भिन्न क्षेत्रीय इकाइयाँ एक – दूसरे से किस प्रकार भिन्न हैं । 

( 2 ) भौतिक और मानव भूगोल ती एकता Unity of Physical and Human Geography ) हेटनर भौगोलिक अध्ययन में भौतिक बनाम मानव भूगोल की वैधता को नहीं मानते थे । हेटनर ने जोर देकर कहा था कि क्षेत्रीय अध्ययन के रूप में भूगोल न तो प्राकृतिक विज्ञान है और न ही सामाजिक विज्ञान बल्कि यह एक साथ ही दोनों प्रकार का अध्ययन है । उनके विचार से मानव और प्रकृति दोनों ही भौगोलिक अध्ययन के समान महत्व वाले अनिवार्य पक्ष हैं । अतः इन दोनों को एक – दूसरे से पृथक् नहीं किया जा सकता । 

( 3 ) सामान्य और विशिष्ट भूगोल ( General and Special Geography ) हेटनर के अनुसार अन्य विज्ञानों की भाँति भौगोलिक अध्ययन में सामान्य ( क्रमबद्ध ) और विशिष्ट ( प्रादेशिक ) दोनों ही अध्ययन के अनिवार्य पक्ष हैं । हेटनर की अधिकांश रचनाएं प्रादेशिक अध्ययन से सम्बंधित थीं किन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि वे सामान्य भूगोल या सैद्धान्तिक अध्ययन को गौण समझते थे । उन्होंने अपने सैद्धान्तिक लेखों में दोनों पक्षों को समान महत्व दिया था ।

अल्ब्रेक्ट पेंक

    प्रसिद्ध पुस्तक – Asia in the Ice age

 वाल्थर फेंक

  • अपरदन चक्र का सिद्धांत।

 वाल्टर क्रिस्टॉलर

  • केंद्रीय स्थल का सिद्धांत।

कार्ल हाउस होफर

  • भू राजनीतिक भूगोल को व्यापक एवं प्रभावशाली बनाया।

सूपन

  • सामान्य राजनीतिक भूगोल के मार्गदर्शक सिद्धांत नामक पुस्तक की रचना।
  • वेवर का औद्योगिक स्थिति सिद्धांत।
  • वांन थ्यूनैन का कृषि अवस्थित सिद्धांत।
  • पस्सागे अगेन लैण्ड सॉफ्ट भूगोल का सर्वप्रथम प्रयोग किया।

भौगोलिक विकास का कालक्रम

 1- चिरसम्मत या शास्त्रीय काल – 600 ई.पू. से 300 ई.

 2- मध्यकाल (300 ई० से 1700 ईस्वी तक)

      i- पूर्व मध्यकाल (300 ई० – 700 ई०)

      ii- अन्तर मध्य काल – (700 ई० – 1100 ई०)

     iii- उत्तर मध्यकाल (पुनर्जागरण काल) – 1100 ई० – 1700 ई० )

 3- पूर्व आधुनिक शास्त्रीय काल – 18 वीं शताब्दी

 4- आधुनिक काल – 19वीं शताब्दी

                            प्राचीन कालीन भूगोलवेत्ता

   पृष्ठभूमि – 600 ईस्वी पूर्व से लेकर 300 ईस्वी तक के काल को भौगोलिक इतिहास में शास्त्रीय काल के नाम से जाना जाता है। इस काल में भूगोल के विकास में यूनानी, रोमन, भारतीय, चीनी आदि भूगोल वेताओं ने महत्वपूर्ण योगदान दिया।

     यही वह समय था जब सर्वप्रथम भूगोल का व्यवस्थित रूप से अध्ययन प्रारंभ किया गया।

 नोटस- उल्लेखनीय है कि भौगोलिक इतिहास में अठारहवीं सदी को भी शास्त्रीय काल के उपनाम से जाना जाता है। हंबोल्ट ,रिटर ,रैैटजल आदि इस समय के प्रसिद्ध भूगोलवेत्ता थे।

                         यूनानी भूगोलवेत्ता

  500 ईसा पूर्व के आसपास यूनानी साम्राज्य अध्ययन अध्यापन को प्रश्रय देने वाले एक महत्वपूर्ण वैश्विक केंद्र के रूप में उभरा। मिलेट्स तथा काला सागर भौगोलिक अनुसंधान एवं अन्वेषण के मुख्य केंद्र के रूप में उभरे 

इस काल के प्रमुख यूनानी भूगोलवेत्ता अग्र लिखित हैं-

होमर

थेल्स

अनेग्जीमेण्डर

हिकेटियस

हेरोडोटस

प्लेटो

अरस्तु

थियोफ्रेस्ट्स

हिप्पोक्रेट्स

हिप्पार्कस

पोसिडोनियस

पाइथागोरस

इरैटोस्थनीज

पोलिवियस

              होमर 

पुस्तक – इलियड-ओडीसी

  • इनके अनुसार पृथ्वी गोल है। वह चारों ओर से सागर से घिरा हुआ है और आकाश लंबे खंभे पर टिका है।
  • उन्होंने यह भी माना है कि सूर्य सागर सरिता से ही उदय होता है और उसी में अस्त होता है।
  • इन्होंने चारों दिशाओं से आने वाले पवनो के नाम बताए हैं । बोरेस (उत्तरी) , नोट्स (दक्षिणी) , ह्यूरस (पूर्वी) , जैफेरस ( पश्चिमी) , 

थेल्स

  • इन्होंने आयोनियन दर्शन की स्थापना की इसलिए इनको आयोनियन दर्शन का पिता भी कहा जाता है।
  • गणितीय भूगोल के विकास में योगदान।
  • यह पृथ्वी को ब्रह्मांड का केंद्र मानते थे।
  • इन्होंने पृथ्वी को पानी में तैरती हुई तश्तरी (Disc) के रूप में माना।
  • इन्होंने बताया कि नील नदी दो नदियों बाहेल ग़ज़ल (श्वेत नील) , बाहेल अजरक ( नीली नदी) के मेल से बनी है।

अनेग्जीमैण्डर

  • बेबीलोन के एक यंत्र नोमोन के उपयोग से देशांतरो को मानचित्र पर निश्चित करने का प्रयास किया।
  • मापक के आधार पर विश्व का प्रथम मानचित्र बनाएं। उल्लेखनीय है कि इसके पूर्व सुमेर वासियों ने 2700 ईसा पूर्व में अपने नगरों का चित्रात्मक मानचित्र बनाया था।
  • इन्होंने अपने विश्व मानचित्र में यूनान को मध्य में रखा था।
  • अनेग्जीमैण्डर को गणितीय भूगोल का संस्थापक माना जाता है।

  हिकेटियस

  • “जेस पीरियोड्स” अर्थात पृथ्वी का वर्णन नामक ग्रंथ की रचना की। इस पुस्तक को प्रादेशिक भूगोल का प्रथम ग्रंथ माना जाता है बाद में इस पुस्तक को पेरिप्लस अथवा तटीय सर्वेक्षण भी कहा गया।
  • इनके काल में कैस्पियन सागर को “हिरकेनियंस” के नाम से जाना जाता था।

 हेरोडोटस

  • इन्हें इतिहास का पिता कहा जाता है।
  • डेल्टा शब्द का प्रथम बार उपयोग।
  • यह प्रथम विद्वान थे जिसने विश्व मानचित्र पर याम्योत्तर/देशांतर खींचने का प्रयास किया।
  • कैस्पियन सागर को आंतरिक सागर माना।
  • इन्होंने विश्व को तीन महाद्वीपों यूरोप, एशिया और लीबिया में वर्गीकृत किया।
  • नृजातीय अध्ययन के कारण उन्हें father of Ethnograph भी कहा जाता है।

प्लेटो

  • निगमनात्मक अध्ययन पद्धति के समर्थक (सामान्य से विशिष्ट की ओर)
  • भू- केंद्रीय सिद्धांत के प्रतिपादक।

          अरस्तू

  • पुस्तकें – जलवायु विज्ञान, ब्रह्मांड वर्णन
  • आगमनात्मक अध्ययन पद्धति के समर्थक (विशिष्ट से सामान्य की ओर)
  • नियतवादी विचारक।

थियोफ्रेस्ट्स

  • वनस्पति विज्ञान के जनक
  • अरस्तु का शिष्य

इरैटोस्थनीज

  • पुस्तक – जियोग्राफिका (प्रथम शास्त्रीय पुस्तक)
  • भूगोल का जनक।
  • पृथ्वी को 5 कटिबंध में विभाजित किया – एक उष्ण कटिबंध, दो शीतोष्ण कटिबंध, दो शीत कटिबंध।
  • नोमोन की सहायता से विषुवत रेखा की लंबाई ज्ञात की।
  • उनके द्वारा लिखी गई पुस्तक में वासी योग्य ( habitable) विश्व को ‘एक्यूमेन’कहां।
  • इन्होंने पृथ्वी की आकृति को पूर्णता गोलाकार माना।
  • उनके अनुसार पृथ्वी की परिधि 25000 मील है।जबकि वर्तमान में पृथ्वी की परिधि लगभग 24840 मील है इस तरह परिधि की गणना के संदर्भ में इरेटोस्थनीज लगभग सही थे
  • उन्होंने भूगोल को परिभाषित करते हुए कहा कि भूगोल मानव के घर के रूप में पृथ्वी का अध्ययन करता है।
  • विभिन्न अक्षांश एवं देशांतर रेखाओं का इनके द्वारा मापन किए जाने के कारण इन्हें father of Geodesy कहा जाता है।
  • भूगोल के लिए इन्होंने सर्वप्रथम ज्योग्राफी शब्द का प्रयोग किया था।
  •   ज्ञात सूचनाओं के आधार पर उसने एक विश्व का मानचित्र भी बनाया। हालांकि वह दोषपूर्ण था।
  • अपने इस विश्व मानचित्र में सात अक्षांश तथा तथा सात देशांतर रेखाओं को प्रदर्शित किया किया

हिप्पार्कस

  • इन्होंने वृत को 360 अंश में विभाजित किया।
  • इन्होंने अक्षांश और देशांतर रेखाओं को निश्चित करने के लिए एस्ट्रोलेब नामक यंत्र का आविष्कार किया जो नोमोन की तुलना में अधिक उपयोगी था।
  • इन्होंने विषुवत रेखा एवं देशांतर रेखाओं को वृहद वृत बताया।
  • अक्षांश और देशांतर रेखा जाल के आधार पर ज्ञात विश्व को 11 जलवायु प्रदेशों में विभाजित किया।
  • इन्होंने त्रिविमीय मंडल को द्विविमीय मंडल में परिवर्तित किया था।
  • इन्होंने दो प्रकार के प्रक्षेप बनाने की विधि प्रस्तुत की- 1- लंब रेखीय। 2- समरूपीय

          पोसिडोनियस

  • पुस्तक – “ the ocean “
  • महासागरों की गहराई ज्ञात करने का प्रयास करने वाला प्रथम विद्वान।
  • भौतिक भूगोल को तर्कसंगत ढंग से विकसित करने के कारण इसे भौतिक भूगोल का पिता भी कहा जाता है।
  • इन्होंने वृहत ज्वार तथा लघु ज्वार के आने की प्रक्रिया को स्पष्ट करने का प्रयास किया । इसी दौरान उन्होंने चंद्रमा की कलाओं का वर्णन किया।

पोलीबियस

  • भौगोलिक क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान।
  • इन्होंने नदियों के अपरदन और निक्षेपण कार्यों तथा उनसे उत्पन्न कई स्थल आकृतियों यथा बाढ़ के मैदान, डेल्टा आदि के निर्माण का वर्णन किया।

अन्य महत्वपूर्ण तथ्य

  • पाइथागोरस ने सर्वप्रथम पृथ्वी को गोल बताया।
  • अरस्तु के अनुसार भूगर्भ में से पृथ्वी की सतह की तरफ गैसों के आने के क्रम में भूकंप तथा ज्वालामुखी जैसी घटनाएं घटित होती हैं।
  • प्लेटो के सहयोगी पोण्टीकस ने यह बताया कि पृथ्वी अपने अक्ष पर  घूर्णन करती हैं।
  • सर्वप्रथम यूनानीयों ने ही रेखा जाल के आधार पर विश्व मानचित्र को बनाने का कार्य किया।
  • थियोक्रेटस ने जलवायु वनस्पति के बीच संबंध स्थापित किया।
  • हिप्पोक्रेट्स ने जलवायु दशाओं के संदर्भ में मानव प्रकृति संबंधों को अपनी पुस्तक Airs, waters, places में विस्तृत अध्ययन किया।

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