चिंतन (thinking)

चिंतन (thinking)

सीखने के 3 पक्ष होते हैं- क्रियात्मक पक्ष, भावनात्मक पक्ष, संज्ञानात्मक पक्ष/ज्ञानात्मक पक्ष

चिंतन विचार करने की एक मानसिक प्रक्रिया है। जिसका आरंभ समस्या के साथ होता है तथा समस्या के अंत तक चलने वाली प्रक्रिया है।

रॉस के अनुसार – चिंतन मानसिक क्रिया का एक ज्ञानात्मक पहलू है।

अथवा

मन की बातों से संबंधित एक मानसिक क्रिया है।

चिंतन के प्रकार

1- मूर्त चिंतन / प्रत्यक्ष चिंतन

2- अमूर्त चिंतन / प्रत्ययात्मक चिंतन / संप्रत्यय चिंतन

3- विचारात्मक चिंतन / तार्किक चिंतन / कल्पनात्मक चिंतन

4- सृजनात्मक चिंतन / अपसारी चिंतन (j.p. गिलफोर्ड) / विचारात्मक चिंतन ( जान डयूवी)

चिंतन की प्रकृति

  • यह एक संज्ञानात्मक / ज्ञानात्मक प्रक्रिया।
  • चिंतन अदृश्य होता है।
  • चिंतन एक आंतरिक मानसिक प्रक्रिया है।
  • चिंतन के दौरान वाह्य क्रियाएं / शारीरिक क्रियाएं बंद हो जाती है।
  • चिंतन समस्या समाधान की प्रक्रिया है।
  • चिंतन में अनेक विकल्प होते हैं।
  • चिंतन खोजपूर्ण प्रवृत्ति होती है।
  • चिंतन हमेशा विवेक पूर्ण, लक्ष्य की केंद्रीयत , उद्देश्य पूर्ण होता है।

चिंतन के सोपान

ह्यूजेज ने चिंतन के 4 सोपान बताएं

1- समस्या का आकलन – चिंतन किसी समस्या के साथ उत्पन्न /प्रारंभ होतेे हैं।

2- सम्बन्धित तथ्यो का संकलन – चिंतन करने के लिए समस्या से संबंधित तथ्योंं के बारेे में जाानना।

3- निष्कर्ष पर पहुंचना –

4- परिणाम का निष्कर्ष निकालना

चिंतन और अधिगम के बीच संबंध

जो व्यक्ति जितना अधिक चिंतन करता है वह उतना अधिक अधिगम करता है।

1- भाषा – चिंतन की अभिव्यक्ति की आधारशिला।

2- मूल प्रवृत्ति, रुचियां – जिस प्रकार की रुचि होगी उस प्रकार का चिंतन होगा।

3- ज्ञान – मुख्य स्तंभ।

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