- यूनानी भाषा के शब्द हिस्टोरिया (historia) से अंग्रेजी भाषा हिस्ट्री (history) शब्द का उद्भव हुआ। इसका अर्थ होता है ‘खोजबीन के द्वारा जानकारी व जांच पड़ताल।
- पहले से जो अतीत की घटनाएं हुई हैं उनका कई साक्ष्यों के आधार पर खोजबीन करना, जांच पड़ताल करना और उसकी जानकारी पूरे विश्व को देना।
- इतिहास का पिता हेरोडोटस को कहा जाता है। यह प्राचीन ग्रीक (यूनानी) इतिहासकार थे।
- लेखन और जानकारी के आधार पर इतिहास को मुख्यतः तीन भागों में बांटा जाता है।
1- प्रागैतिहासिक (prehistory) जिस काल का कोई लिखित साक्ष्य नहींं मिलते हैं। इनकी जानकारी पाषाण के द्वारा प्राप्त होती हैं।
2- आदि इतिहास काल – लिखित साक्ष्य तो मिले हैं लेकिन पढ़े नहीं गए और जानकारी पाषाणों से प्राप्त होती।जैसे – हड़प्पा काल, वैदिक काल
नोट – वैदिक काल में चारों वेद – ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्वेद थे तो इसे क्यों रखा जाता है? क्योंकि उस समय यह चारों वेद लिखित नहीं थे इन्हें बोल कर एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचाया जाता था।
3- इतिहास (history) जिस काल का पुरातात्विक और साहित्यिक (लिखित) दोनोंं साक्ष्य प्राप्त है। इतिहास को तीन भागों में बांटा जाता है।
i- प्राचीन काल
ii- मध्यकालीन
iii- आधुनिक काल
- भारतीय प्रागैतिहासिक काल का अध्ययन करने का श्रेय सर्वप्रथम रॉबर्ट ब्रूस फुट को जाता है। जिन्होंने प्रथम प्रागैतिहासिक उपकरण तमिलनाडु के पल्लवरम से हथौड़ी प्राप्त किया था।
- सर मार्टीन व्हीलर के सहयोग से हमें भारत की प्रागैतिहासिक संस्कृति और उनके प्रमुख को जानने में काफी मदद मिलती है।
भारतीय पाषाण काल को लोगों के पत्थर के उपकरण के आधार पर तीन भागों में बांटा जाता है।
i- पुरापाषाण काल (500000 से 10000 ईसा पूर्व)
ii- मध्य पाषाण काल ( 10000 से 6000 ईसा पूर्व)
iii- नवपाषाण काल (6000 से 1000 ईसा पूर्व)
i- पुरापाषाण काल (500000 से 10000 ईसा पूर्व)
- पुरापाषाण काल को शिकारी और भोजन संग्रह भी कहा जाता था।
- यह खेती करना नहीं जानते थे।
- यह एक स्थान पर ज्यादा समय तक नहीं ठहरते थे।
- यह काल हिम युग में विकसित हुआ।
- सिंधु और गंगा के तटीय मैदान को छोड़कर भारत के लगभग सभी भागों में निवास जाते थे।
- इस काल के अंतिम समय में आज की जानकारी प्राप्त हुई। (उत्तर पुरापाषाण काल में)
- पाषाण कालीन औजार क्वार्टाजाईट नमक कठोर पत्थर से बनते थे इसलिए भारत में पुरापाषाण कालीन मानव क्वार्टजिट मानव कहा गया है।
पुरापाषाण काल को पत्थरों के उपकरण के उपयोग के आधार पर तीन भागों में विभाजित किया जाता है।
पूर्व पुरापाषाण काल – 500000 से 50000 ईसा पूर्व
- हथौड़ी, कुल्हाड़ी और धुरे का प्रयोग काटने, खोदने और खाल उतारने के लिए किया जाता था।
- सोन और सोहन नदी की घाटी (पाकिस्तान), भीमबेटका (मध्य प्रदेश) और बेलन घाटी (मिर्जापुर)
मध्य पुरापाषाण काल (50000 से 40000 ईसा पूर्व)
- पत्थरों के टुकड़ों से बने औजार मुख्यता: कुदाल, नुकीले पत्थर के गडासा
- सोन, नर्मदा एवं तुम भद्रा नदी घाटी में साक्ष्य मिले हैं।
- एच०डी० सन कालिया 1960 द्वारा नेवासा (महाराष्ट्र) का उत्खनन किया था।
उत्तर पुरापाषाण काल (40000 से 1000 ईसा पूर्व)
- समानांतर किनारे वाले गंडासे और कुछ जगह हड्डियों के औजार पाए गए हैं।
- आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र व मध्य प्रदेश में उत्तर पुरापाषाण काल के उपकरण प्राप्त हुए हैं।
- करनूल की गुफाओं और आंध्र प्रदेश के चिंतामणि गावी में हड्डियों के बने औजार प्राप्त हुए हैं।
- चित्रकला का विकास और मानव शिकारी जीवन जी रहा था।
- इस चरण में मानव जाति अस्तित्व में आई-होमो सेपियंस (हमारे पूर्वज)
- यह हिमयुग का अंतिम चरण था। वातावरण पहले की तुलना में गर्म हो गया था।
- आग का आविष्कार भी इस युग में हुआ था।
ii- मध्य पाषाण काल ( 10000 से 6000 ईसा पूर्व)
- मध्य पाषाण काल के मानव को आखेटक और पशुपालक कहा जाता था।
- इस काल में पूर्व से उपस्थित पत्थरों के उपकरणों का छोटे होते गए।
- मध्य पाषाण काल के अधिकतम स्थलों में मिट्टी के बने बर्तन नहीं पाए गए। लेकिन गुजरात के लंघनाज और मिर्जापुर की कैमूर क्षेत्र में मिट्टी के बर्तन मिले हैं।
- मिट्टी के बने बर्तन का साक्ष्य नवपाषाण काल का माना जाता है।
- प्रागैतिहासिक काल के मध्य पाषाण काल में ही पाषाण काल का आरंभ हुआ। 18 सो 68 में भारत की प्रथम पाठशाला चित्रकला की खोज सोहागी घाटी (कैमूर पर्वत-उत्तर प्रदेश)
- भीमबेटका की गुफा – चित्रकला
- इस काल के चित्रों में जानवरों की प्रमुखता थी किंतु सॉप को कहीं भी नहीं दर्शाया गया है।(मछलियां व पक्षियों का शिकार करने लगा)
- बागोर (कोठारी नदी-राजस्थान) – मध्य पाषाण कालीन के भारत सबसे विशाल और सबसे अधिक उत्खनन क्षेत्र में।
- आजमगढ़ (मध्य प्रदेश) और बागोर ने पशुपालन के प्रमाण मिले हैं।
- महादहा (उत्तर प्रदेश) हड्डियों से बनी कलाकृति और हड्डियों से बने तीर और आभूषण प्राप्त हुए हैं।
- मध्य पाषाण काल में तापमान बढ़ने लगा था और वातावरण गर्म वह सुखा हो गया था बहुत सारे जगहों पर घास के मैदानों गए थे जानवर इन्हीं घास को खाकर जीवित रहते थे।
- मानवीय आक्रमण युद्ध की शुरुआत हुई प्रथम साक्ष्य उत्तर प्रदेश के सराय नाहर राय से मिला है।
iii- नवपाषाण काल (6000 से 1000 ईसा पूर्व)
- भोजन उत्पादन, शिकार, पशुपालन का आरंभ।
- उत्तरी भारत में 8000 से 6000 ईसा पूर्व समय माना गया।
- वी गार्डन चाइल्ड ने नवपाषाण चरण को नवपाषाण क्रांति का नाम दिया है। क्योंकि अब मानव खेती करना और बस्तियां बसाने लगा।
महत्वपूर्ण विशेषताएं
- भोजन उत्पादन का आगमन:- चावल,रागी के समान, मक्का, गेहूं, चना जानवरों जैसे- भेड़, कुत्ता, गधा, घोड़ा व बकरियों का पालन।
- तकनीकी खोज :- पालिश किए हुए पत्थर के उपकरण, पीसने के पत्थर के उपकरण,
- हथौड़ी के प्रकार के आधार पर नवपाषाण कालीन संस्कृतियों के तीन महत्वपूर्ण क्षेत्र।
i- उत्तर – पश्चिमी – आयताकार कुल्हाड़ी काटने का सिरा वक्राकार
ii- उत्तर – पूर्वी – आयताकार
iii- दक्षिणी – अंडाकार
- मिट्टी के बर्तन बनाने का विकास :- आरंभ में मिट्टी के बर्तन हाथ से बनाए जाते थे उसके उपरांत चेक की सहायता से बनाने लगे। मिट्टी के बर्तन को काली पालिश और चटाई की छाप वाले बर्तन मिले हैं।
- आत्मनिर्भर ग्रामीण समुदाय का उद्भभव- घर बनाना, नाव बनाना, कपास और उनके कपड़े सुनना,
- तांबे का प्रथम प्रयोग
- श्रम का विभाजन :- खेती करना, औजार बनाना, पशु पालन करना, नाव बनाना, घर बनाना।
पाषाण कालीन स्थल
- बुर्ज होम (कश्मीर) विशिष्ट आयताकार कुल्हाड़ी, कुत्तों कोमाली के साथ दफनाने का साक्ष्य मिला है।
- गुफा कराल, गड्ढों में बने आवास, घरों के अंदर बने कब्रिस्तान यह सभी साक्ष्य भी कश्मीर में मिले हैं।
- मास्की, ब्रह्मगिरि, पिकलीहाल तीनों कर्नाटक में है- मवेशियों को चराने का प्रमाण।
- बुदिहल- सामूहिक भोजन को तैयार करने का प्रमाण
- बिहार में चिराद एवं मेघालय में गारो- हड्डियों और विशेषकर सिंगो से बने औजार के प्रमाण प्राप्त हुए हैं।
- मेहरगढ़ (बलूचिस्तान- पाकिस्तान) सबसे पहला नवपाषाण कालीन स्थल है यहां गेहूं के प्रमाण मिले हैं। बलूचिस्तान को रोटी की टोकरी भी कहा जाता है। यहां खेती के प्रथम साक्ष्य मिला।
- बेलन घाटी में कोल्हडीवा – यहां नवपाषाण कालीन,ताम्र पाषाण कालीन और लौह युग की बस्तियों का प्रमाण मिलता है।यहां से विश्व में प्रारंभिक चावल की खेती का प्रमाण मिला है।
- चोपानो मांगों ( बेलन घाटी) – मिट्टी के बर्तनों के उपयोग के प्रारंभिक प्रमाण मिलते हैं।
ताम्र पाषाण काल- 3000 से 500 ईसा पूर्व
ताम्र पाषाण काल का अर्थ होता है पाषाण उपकरणों के साथ साथ धातु का उपयोग करना। तांबे का प्रयोग मानव द्वारा सबसे पहले किया गया था। यद्यपि कहीं-कहीं कांसे का प्रयोग भी मिलता है।
तकनीकी रूप से हड़प्पा पूर्व की बस्तियों को ताम्र पाषाण बस्ती कहा जाता है किंतु कहीं कई क्षेत्रों में हड़प्पा वासियों के उपरांत ताम्र पाषाण की बस्तियां स्थापित हुई।
हड़प्पा की सभ्यता को कांस्य की सभ्यता कहा जाता है क्योंकि कांस्य, तांबे, और टिन को मिलाकर बनाया जाता है।
हड़प्पा पूर्व की कुछ ताम्र पाषाण बस्तियां
- राजस्थान में गणेश्वर, कालीबंगा
- हरियाणा में बनावली
- सिंध में कोटदीजी
आर्थिक गतिविधियां
- ताम्र पाषाण में गाय, भेड़, बकरी और भैंसों को पाला जाता था और हिरण का शिकार किया जाता था।
- वह घोड़ों से परिचित नहीं थे।
- पालतू जानवरों का प्रयोग मांस के लिए किया जाता था ना कि दूध के लिए।
- मुख्य रूप से गेहूं और चावल का उत्पादन किया जाता था बाजरा, मसूर, काला चना, मटर आदि का भी उत्पादन करते थे।
- इस काल में झूम कृषि का भी प्रचलन था।
- इस काल की किसी स्थल से हल और कुदाल की प्राप्ति नहीं हुई है।
- इस काल में काले और लाल मिट्टी के बर्तनों का प्रयोग किया जाता था।
- इस काल में महिला चौक का इस्तेमाल नहीं करती थी मात्र पुरुष ही इस्तेमाल करते थे।
ताम्र पाषाण काल की विशेषताएं
- मिट्टी के बने घरों में रहते थे और इनको पक्की ईंटों का ज्ञान नहीं था।
- लेखन कला से परिचित नहीं थे।
- ताम्र पाषाण काल के लोग भोजन पका कर खाते थे।
- इनके स्थलों से भूदेवी की छोटी-छोटी मूर्तियां प्राप्त हुई है। इससे यह पता चलता है कि देवी मां की पूजा होती थी।
- महिलाएं शिव और हड्डियों से बने गाने पहनती थी।
- बैलून की धार्मिक विश्वास का प्रतीक था क्योंकि मालवा और राजस्थान के स्थलों से बैल की मूर्ति प्राप्त हुई है।
- इस काल के लोग तांबे को गलाने की कला जानते थे।
- ताम्र पाषाण कि लोग कटाई और बुनाई के जानकार थे।
- ताम्र पाषाण कालीन बस्तियां दक्षिण पूर्वी राजस्थान, पश्चिमी मध्य प्रदेश, पश्चिमी महाराष्ट्र और पूर्वी भारत के क्षेत्रों में पाई जाती हैं।
- ताम्र पाषाण के स्थलों में कुछ विभिन्नता भी पाई जाती है जैसे पूर्वी भारत में चावल का उत्पादन होता था वहीं पश्चिमी भारत में जौ और गेहूं की खेती होती थी।
- महाराष्ट्र में मृतक को उत्तर दक्षिण दिशा में दफनाया जाता था जबकि दक्षिण भारत में उन्हें पूर्व पश्चिम दिशा में ,पूर्वी भारत में आंशिक रूप से मृतकों को दफनाने की प्रथा थी।
- इस काल में शिशु मृत्यु दर बहुत ज्यादा था क्योंकि पश्चिमी महाराष्ट्र में बहुत बड़ी संख्या में शिशुओं को दफनाने की जानकारी प्राप्त हुई है।
- सामाजिक और समानता की जानकारी भी प्राप्त हुई है क्योंकि शासन करने वाले लोग आयताकार मकान में और सामान निर्जन लोग झोपड़ियों में रहते थे।
ताम्र पाषाण काल इन स्थलों से प्राप्त कुछ विशिष्ट वस्तुएं
- आहार (राजस्थान) -धातु को गलाना तथा पत्थरों के घर मिले हैं।
- बिलुंड (राजस्थान में बनास घाटी) – यदा-कदा पक्की ईंटों का प्रयोग।
- नेवासा,जोर्वे-गैर-हड़प्पा संस्कृति (महाराष्ट्र)
- नवदाटोली (महाराष्ट्र) – सभी प्रकार के अनाजों की प्राप्ति।
- देमाबाद – विशालतम जोर्वे संस्कृति का स्थल-तांबे और कांसे की मूर्तियां प्राप्त हुई है। (रथ चलाता हुआ गेंडा)
- जार
- जार्वे की यह विशेषता है कि यहां वयस्क व्यक्ति की मृत्यु के बाद पैर का नीचे का हिस्सा काटकर दफना दिया जाता था ताकि भूत ना बने अंधविश्वास को दर्शाता है।
- कायथा- मिट्टी से टूटे हुए फर्श
- मालवा- ताम्र युगीन मिट्टी के पाल (गैर हड़प्पा संस्कृति)
ताम्र पाषाण एवं हड़प्पा सभ्यता में अंतर
- ताम्र पाषाण काल ग्रामीण था जबकि हड़प्पा सभ्यता शहरी था।
- ताम्र पाषाण काल में तांबे का उपयोग जबकि हड़प्पा सभ्यता नहीं कांस्य का उपयोग
- ताम्र पाषाण काल पहाड़ और नदियों के किनारे जबकि हड़प्पा सभ्यता नदियों के साथ-साथ उर्वरक मैदानों में (सिंधु घाटी)